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ऊपर (१३) आनत व (१४) प्राणत है। वादमें (१५) आरन कल्प
और (१६) अच्युत कल्प है। इन १६ कल्पों पर १२ इंद्रोंका अधिकार है। सौधर्मेंद्र, ईशानेद्र, सनतकुमारेन्द्र और माहेन्द्र क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ स्वर्गक अधिपति है। ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्प ब्रह्मेन्द्र अधिकारमें हैं। लांतव इन्द्र सप्तम और अष्टम कल्पका स्वामी है। शुक्रेन्द्र शुक्र और महाशुक्र कल्पका संरक्षण करता है। शतार इन्द्रका अधिकार ग्यारहवें और बारहवे स्वर्ग पर है। आनतेन्द्र, प्राणतेन्द्र, आरणेन्द्र और अच्युतेन्द्र क्रमशः १३वे, १४वें, १५वें और १६वे कल्पके अधिस्वामी है। १६३ कल्प अथवा स्वर्ग तक जितने वैमानिक देव रहते है वे कल्पोपपन्न कहलाते हैं। १६ स्वर्गक ऊपर अवेयक नामक विमान है। उसके ऊपर अनुदिश विमान तथा उसके ऊपर अनुत्तर विमान है।
कल्पातीत विमानोंमें कल्पातीत नामक वैमानिक देव रहते है। १६ कल्प और कल्पातीत विमान ६३ विभागो (पटलों) में विभक्त हैं, जिनमेंसे सौधर्म और ईशान कल्पके कुल मिलकर ३१ पटल हैं। यथा-(१) ऋतु, (२) चन्द्र, (३) विमल, (४) वल्गु, (५) बीर, (६) अरूण, (७) नन्दन, (८) नलिन, (९) रोहित, (१०) कांचन, (११) चंचत् , (१२) मारूत, (१३) ऋद्धीश, (१४) वैडूर्य, (१५) रुचक, (१६) रुचिर, (१७) अंक, (१८) स्फटिक, (१९) तपनीय, (२०) मेघ, (२१) हारिद्र, (२२) पद्म, (२३) लोहिताक्ष, (२४) वज्र, (२५) नंद्यावर्त, (२६) प्रभंकर, (२७) पिष्टाक, (२८) गज, (२९) मत्तक, (३०) चित्र और (३१) प्रम। तृतीय और चतुर्थ स्वर्गमें ७ समूह