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जिनवाणी उससे तीन योजन ऊपर बृहस्पति; उससे चार योजन आगे मंगल और मंगलसे चार योजन ऊपर शनिश्चर ग्रह है । इस प्रकार भूतलसे ७९० योजनकी ऊंचाई पर, ११० योजनके भीतर ज्योतिश्चक्र है। सूर्यविमान तप्त सुवर्गके समान है। इसका आकार अर्धगोलाकार और व्यास
योजनसे भी कुछ अधिक है । सूर्यविमानकी परिधि व्यासके तीन गुनेसे कुछ अधिक है । १६ हजार सेवक सूर्यविमानको धारण किये है । इस विमानमें सूर्यदेव अपने परिवारके साथ रहते हैं।
वैमानिक देव ज्योतिफ देवोंसे भी ऊपर हैं। वे अर्व लोकमें रहते है। सुमेरु पर्वतके शिखरसे ऊर्च लोकका आरंम होता है। इसके १६ कल्प अथवा स्वर्ग किये गए हैं। (१) सौधर्म कल्प उत्तर दिगामें और (२) ईशान कल्प दक्षिण दिशा में है। इन दो स्वाँके ऊपर क्रमशः (३) सनतकुमार कल्प (४) माहेन्द्र कल्प हैं। उसके उपर (५) ब्रह्म कल्प और (६) ब्रह्मोत्तर कल्प हैं। तदुपरि (७) लांतव और (८) कापिष्ट है। उस पर (९) शुक्र कल्प और (१०) महाशुक्र कल्प है। तत्पश्चात् (११) शतार व (१२) सहस्रार कल्प है। उसके
१. श्वेताम्बर-दिगम्बर सम्मत तत्त्वार्थस्त्र अध्याय ४ सूत्र ३ “दशाटपंचद्वादश विकल्पा कल्पोपपन्नपर्यन्ता" में १२ देवलोकोंका विधान है। -तथापि यहा १६ देवलोक लिखे हैं। यह तथा इसके आगेका देवलोकोंका वर्णन तथा व्यतरोका स्थाननिर्णय वगैरह दिगम्वर शास्त्रोमें विशिष्ट रूपसे वर्णित है। भट्टाचायजीने यहां उसीको ही उद्धत किया प्रतीत होता है।
(गुजराती अनुवादक श्री सुशील) व्यन्तरोंका स्थाननिणर्य वगैरह भी दिगम्वर शास्त्रानुसार ही दिया मालूम होता है। (मु. श्री. दर्शनविजयजी)