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(३) विद्युतकुमार, (४) सुवर्णकुमार, (५) अग्निकुमार, (६) घातकुमार (७) स्तनितकुमार, (८) उदधिकुमार, (९) द्वीपकुमार और (१०) दिक्कुमार।
व्यंतरके आठ मेद हैं-(१) किन्नर, (२) किंपुरुप, (३) महोरंग, (४) गंधर्व, (५) यक्ष, १६) राक्षस, (७) भूत और (८) पिशाच।
ज्योतिप्कके पांच प्रकार हैं--(१) सूर्य, (२) चन्द्र, (३) ग्रह, (४) नक्षत्र और (५) तारक।
वैमानिक दो प्रकारके है-(१) कल्पोपपन्न और (२) कल्पातीत ।
धर्मा नामक नरकके तीन भाग है। पहिले भागका नाम 'खर भाग', दूसरेका 'पंक भाग' और तीसरेका 'अब्बहुल' है। धर्मा नरकके पहिले और दूसरे भागमें समस्त भवनवासी देवोके भवन अर्थात् वासस्थान है। विविध देशादिकोंमें वास करनेके कारण दूसरे प्रकारके देव व्यंतर कहलाते है । रत्नप्रभा नामक नरकके दूसरे भागमें राक्षस नामके व्यंतर रहते है। शेष सात प्रकारके व्यंतर इस नरकके प्रथम भागखरभाग में रहते है । इसके अतिरिक्त व्यंतर बहुतसे पर्वत, गुफा, सागर, अरण्य, वृक्षकोटर और मार्ग आदिमें रहते है। भूमितलसे लेकर मध्य लोकके अन्तरवर्ती विशाल आकाशमें ज्योतिष्क रहते है । भूमिभागसे ७९० योजनके भीतर एक भी ज्योतिष्क देय नहीं है । ७९० योजनसे आगे तारागण है। भूतलसे ८०० योजन दूर सूर्य-विमान है। सूर्यसे कोई ८० योजन ऊपर चन्द्र है। चन्द्रसे तीन योजन ऊपर नक्षत्र है। नक्षत्रोंसे तीन योजन ऊपर बुधग्रह; उससे तीन योजन ऊपर शुक्र