SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ जिनवापी हैं: (३२) अंजन, (३३) वनमाल, (३४) नाग, (३५) गरुड, (३६) लांगल, (३७) वलभद्र और (३८) चक्र । पञ्चम और षष्ठ कल्पमें १ भाग हैं: (३९) अरिष्ट, (४०) देवसमिति, (४१) ब्रह्म, (४२) ब्रह्मोतर। सातवे और आठवें स्वर्गके दो भाग है: (१३) ब्रह्महृदय और (४४) लांतव। नवम, दशम कल्पमें (४५) महाशुक्र नामक १ पटल है। एकादश और द्वादश कल्पमें भी एक ही भाग (४६) शतार है। १३३, १४वे, १५वे और १६वे कल्पके कुल ६ भाग हैः (४७) आनत, (४८) प्राणत, (४९) पुप्पक, (५०) सातक, (५१) आरण और (५२) अच्युत । अवेयक विमानके अधोभागके ३ विभाग है। (५३) सुदर्शन, (५४) अमोघ, (५५) सुप्रबुद्ध । अवेयक विमानके मध्य भागमें ३ पटल है: (५६) यशोधर, (५७) सुभद्र, (५८) विशाल । प्रैवेयक विमानके ऊपरवाले भागमें ३ पटल है: (५९) सुमल, (६०) सौमन और (६१) प्रीतिकर। अनुदिश नामक विमानमें एक ही पटल (६२) आदित्य है और इस विमानके ऊपर अनुत्तर विमानमें (६३) सर्वार्थसिद्ध नामक एक पटल है।। उपरोक्त वर्णनसे मालूम होगा कि, १६ कल्पमें कुल ५२ पटल है। प्रत्येक पटलमें ३ प्रकारके विमान अथवा निवासस्थान हैं। (१) इन्द्रक विमान, (२) श्रेणीबद्र विमान और (३) प्रकीर्णक विमान। मध्यमें इन्द्रक विमान और उसके आसपास श्रेणीबद्ध विमान रहता है। प्रत्येक श्रेणीबद्ध विमानमें ६३ विमान होते है। पर ज्यों ज्यों नीचेसे ऊपर जाते है त्यों त्यों एक श्रेणी विमान कम होता जाता है। इस प्रकार ६२वे पटलमें एक इन्द्रक विमान रहता है। उसकी चारों
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy