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जिनवाणी भारतीय जैन समाज अन्योंकी भांति केवल अहिंसाके गीत गाकर ही नहीं बैठ रहता; वह तो मन, वचन, कायासे इस धर्मका पालन करता है। और वातोमें जैन समाज भले ही पीछे रह गया हो, पर उसकी अहिंसाकी आराधना-भक्ति तो प्रशंसनीय है। जैन विद्याके पुनरुद्वारमें वंगाली विद्वान यथाशक्ति सहायता देने के लिये तैयार रहें तो भारतीय सभ्यता चमक उठेगी। इस बातका पुनरुच्चारण करके मै इस निबन्धको समाप्त करता हूं।
* वगाली साहित्य-परिषदमें (रावानगरमें) यह निबंध पढ़ा गया था।