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जैन विज्ञान
१०५ बंगाल सदैव अग्रणी रहा है। बंगालमें अद्यावधि बहुतसी प्राचीन जैन प्रतिमाएं मिली है। बंगालमें ही “सराक" नामक अहिंसाप्रिय जातिकी बस्ती होनेकी खबर मिली है। यद्यपि आजकल यह जाति हिन्दु समाजमें मिल गई है, फिर भी इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि यह जाति प्राचीन जैन समाजकी-श्रावकसमाजकी उत्तराधिकारिणी है। इनके आचार, इनकी लोककथा और संस्कारोंसे इस सिद्धान्तको इस जातिके श्रावक होनेकी बातको-विशेष पुष्टि मिलती है।
यह भी एक अनुमान होता है कि वंगालमें आज जिसे बर्दवानवर्धमान नगर कहते है उसका संवन्ध जैन सम्प्रदायके अन्तिम-चोवीसवें तीर्थंकर श्रीवर्द्धमानस्वामीके नामके साथ होगा। श्रीमहावीरस्वामीके नाम पर वंगालकी भूमिमें वीरभूमि (वीरभूम जिला) नाम पड़ा हो यह भी स्वाभाविक है। बंगालमें जैन प्रतिमाओंके अतिरिक्त कहीं कहीं प्राचीन जैन मन्दिर भी पाये जाते हैं। बंगालके निकटवर्ती मगधमें जैन महापुरुषोंने बहुधा अपनी वीरगर्जना की है। यह सब देखते हुवे यदि सभ्यताभिमानी बंगाली लोग जैन विद्याके पुनरुद्धारमें पर्याप्त मनोयोग न दे तो यह उनके लिये एक आक्षेपकी बात होगी।
यहां एक और बात भी कह देना चाहता हूं। महात्मा गांधीजीके कथनानुसार अहिंसाधर्मके प्रतापसे भारतवर्षका राजनैतिक उद्धार होना चाहिये। इस राजनैतिक अहिंसाका आचरन सर्वप्रथम बंगालने ही कर दिखलाया था। इस अहिंसाका सूत्रपात कहांसे हुवा ? वेदशासित धर्ममें अहिंसाकी प्रशंसा है-मै इस वातको अस्वीकार नहीं करता। बौद्ध भी अहिंसाको स्वधर्मके आधाररूप मानते है। परन्तु