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________________ जैन विज्ञान कर्मका जो स्वाभाविक क्षय होता है उसका नाम सविपाक निर्जरा है; और कर्मभोगसे पहिले ध्यानादि साधना द्वारा जो कर्मक्षय होता है उसका नाम अविपाक निर्जरा है। मोक्ष जीवके समस्त कर्मोका अन्त होने पर वह मोक्षको-स्वाभाविक अवस्थाको - प्राप्त करता है। जैन शास्त्रमें मोक्षमार्गके १४ सोपानोका वर्णन है। इन्हे १४ गुणस्थानक कहा जाता है। यहां तो केवल उनके नाम ही लिख कर सन्तोष करता हूं। (१) मिथ्यात्व, (२) सासादन, (३) मित्र, (४) अविरत सम्यक्त्व, (५) देशविरत, (६) प्रमत्तविरत, (७) अप्रमत्तविरत, (८) अपूर्वकरण, (९) अनिवृत्तिकरण, (१०) सूक्ष्मसंपराय, (११) उपशांतमोह, (१२) क्षीणमोह, (१३) सयोगकेवली, (१४) अयोगकेवली इन सबके लक्षणको छोड़ देता हुं। मोक्षमार्ग जैनाचार्य सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकोएकसाथ तीनोंको-मोक्षमार्गप्रापक- मोक्षमार्गमें लेजानेवाला-कहते है। इन्हें त्रिरत्न अथवा रत्नत्रयी भी कहा जाता है। सम्यग्दर्शन जीव, अजीव आदि पूर्वकथित तत्वोंका जो विवरण फिया उसमें अचल श्रद्धा रखनेका नाम सम्यग्दर्शन है। सम्यग्ज्ञान • ' संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय नामक तीन प्रकारके समारोप
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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