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जैन, विज्ञान
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होता है। इसमें इन्द्रिय या अन्य किसी वस्तुको सहायताकी आवश्यकता नहीं होती 4
केवलज्ञानी मुक्तिको प्राप्त या मुक्त पुरुष होता है। यहां केवलज्ञानके साथ ही हमें जैन दर्शनकथित सात तत्त्वोंका स्मरण होता है। इन सात तत्वोंके नाम ये हैं - जीव, अजीव, आश्रव, चंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष |
जीव, अजीव
जैन दर्शनानुसार जीव चेतनादि गुण विशिष्ट है । स्वभावतः शुद्ध जीव अनादि कालसे अजीवतरवसे लिप्त है । इस अजीव तत्त्वसे छुटकारा पानेका नाम मुक्ति है ।
आश्रव
स्वभावतः शुद्ध जीव जब राग-द्वेष करता है तब जीवमें कर्मपुद्गल आश्रव प्राप्त करते है- प्रवेश करते है। आश्रवके दो भेद हैंएक शुभ और दूसरा अशुभ। शुभ आश्रवसे जीव स्वर्गादिके सुखोंका अधकारि बनता है और अशुभ आश्रवसे इसे नरकादिकी यातनाएं सहन करनी पड़ती है । आश्रवकालमें जो कर्म-पुद्गल जीवमें प्रवेश करते है उनकी प्रकृति आठ प्रकारकी होती है। ज्ञानावरणीय कर्म, ' दर्शनावरणीय कर्म, मोहनीय कर्म, वेदनीय कर्म, आयुकर्म, नामकर्म, गोत्रकर्म और अन्तरायकर्म ।
जो कर्म ज्ञानको ढक लेता है वह ज्ञानावरणीय है । जिससे जीवका स्वाभाविक दर्शनगुण ढक जाता है वह दर्शनावरणीय है ।