________________
१००
'जिनवाणी जीव भी द्रव्य है और सब मिलकर कुल छः द्रव्य हैं।
अवधिज्ञान मति-श्रुतादि पंचविध ज्ञानमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञान पर विचार किया गया है । अव अवधिज्ञानादि पर विचार करेंगे। ___ जो सव रूप-विशिष्ट द्रव्य स्थूल इन्द्रियोंके लिये अगोचर है उनकी असाधारण अनुभूतिका नाम अवधिज्ञान है। आजकल जिसे Clairvoyance कहते है, कुछ अंशोंमें अवधिज्ञानकी उसके साथ तुलना कर सकते है । अवधिज्ञानके तीन भेद है - देशावधि, परमावधि और सर्वावधि । देशावधि दिशा और कालसे सीमाबद्ध है । परमावधि असीम है। सर्वावधिके द्वारा विश्वके समस्त रूपयुक्त द्रव्योंका अनुभव हो सकता है।
मनापर्यव अन्यकी चित्तवृत्तिके विषयके अनुभवका नाम 'मन पर्यवज्ञान' है। पाश्चात्य विज्ञान में इसे टेलीपैथी अथवा Mind-reading कहते हैं। मन पर्यवज्ञानके ऋजुमति तथा विपुलमति, ये दो भेद है। ऋजुमति संकीर्णतर है। विपुलमतिकी सहायतासे विश्वके समस्त चित्तसंबन्धी विषयोंका सूक्ष्म अवलोकन हो सकता है।
केवलज्ञान चैतन्यमुक्त जीवोके ज्ञानकी यह एकदम अन्तिम मर्यादा है। केवलज्ञानमें विश्वके समस्त विषयोंका समावेश हो जाता है। केवलज्ञान माने सर्वज्ञता ऐसा कह सकते है। केवलज्ञान आत्मा से ही उत्पन्न