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जैन विशाल
____यह और इसके बादके दो नय शब्दके अर्थका विचार करते हैं। किसी शब्दका वास्तविक अर्थ क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर तीन प्रकारके नय अपनी अपनी पदतिसे देते हैं। प्रत्येक परवर्ति नय, अपनेसे पूर्ववर्ति नयकी अपेक्षा शब्दक अर्थको अधिक संकीर्ण बनाता है। 'शब्द-नय शब्दमें अधिफसे अधिक अर्थका आरोपण करता है। इन शब्द-नयका आशय यह होता है कि एकार्थवाचक शब्द लिंग, वचनादि क्रमसे परस्पर भिन होने पर भी एक ही अर्थक घोतक होते हैं।
समभिरुढ समभिल्ट प्रत्येक शब्दके मूल धातुकी ओर ले जाता है। वह बतलाता है कि एफार्थवाचक शद भी वस्तुतः भिन्न भिन्न अर्थको घोतित करते हैं। गा तथा पुरन्दर भन्द, गन्दनयके अनुसार एकार्थवाची हैं परन्तु समभिन्लहके अनुसार शक्तिशाली पुरुष ही शक, और पुरविदारक ही पुरंदर कहलायेगा । अर्थात् इस नयके अनुसार शक और पुरन्दरका अयं भिन्न भिन्न है।
एवंभृत जहां तक पदार्थ निर्दिष्ट रूपसे क्रियाशील होता है उसी समय तक उस पदार्थको तत्सम्बन्धी क्रियावाचक शब्दसे पहिचाना जा सकता है। उसके दूसरे क्षणसे उस भदका व्यवहार वन्द हो जाता है। जब तक पुरुप शक्तियाली है तभी तक वह 'शक' है। गक्तिहीन होते ही यह व्यवहार बन्द हो जाता है अर्थात् फिर उसे शक नहीं कह सकते। इसे एवंभूत-नय ' कहते है ।