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जिनवाणी
वस्तु-स्वरूपका विचार न करके, किसी एक बाह्य स्वरूप सम्बंधी विचार करनेका नाम नैगम है । कोई व्यक्ति ईंधन, पानी और अन्य सामग्री लिये जाता हो, तब उससे पूछा जाय कि "तुम यह क्या करते हो?" तो वह उत्तरमें कहे कि "मुझे रसोई करनी है"। उसका यह उत्तर नैगमनयकी दृष्टि से होगा। इसमें ईंधन, पानी तथा अन्य सामग्रीके स्वरूपके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं कहा गया। केवल यही बतलाया गया है कि उसका क्या उद्देश्य है।
संग्रह __वस्तुके विशेष भावकी ओर ध्यान न देकर, वह वस्तु जिस भावसंवन्धसे अपनी जातिकी अन्य वस्तुओंके साथ साश्य या समानता रखती हो उसकी ओर ध्यान देनेका नाम संग्रहनय है । संग्रहनयसे 'पाश्चात्य दर्शनके Classification का मिलान कर सकते हैं।
व्यवहार उपरोक्त-संग्रह-नयसे यह बिल्कुल अलग पडता है। सामान्य भावकी उपेक्षा करके विशिष्टताकी ओर ध्यान देनेका नाम व्यवहारनय है। पाश्चात्य विज्ञानमें इसे Spacification अथवा Individuation कहा जाता है।
जुसूत्र वस्तुकी परिधिको कुछ अधिक संकुचित करके, उसकी वर्तमान अवस्था द्वारा निरूपण करनेका नाम ऋजुसूत्र है।
अलग पडता है
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