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जैन विज्ञान कुछ अंशोंमें पाश्चात्य तर्कविद्या विषयक Explanation के समान कह सकते है।
लब्धि किसी भी पदार्थको, उसके साथ. सम्बन्ध रखनेवाले, किसी भी विषयकी सहायतासे समझानेका नाम लब्धि है।
भावना किसी भी विपयको, पूर्व अवधारित किसी विषयके स्वरूप, उसकी प्रकृति अथवा क्रियाकी सहायतासे समझानेके प्रयत्नको भावना कहते हैं । भावना विषय-व्याख्यानकी एक अति उन्नत प्रणाली है। यह पदार्थ एवं तत्सम्बन्धी अन्य बहुतसी वस्तुओं पर विचार करके निर्णय करने योग्य पदार्थका निरूपण करनेको आगे बढ़ती है।
उपयोग भावना-प्रयोग द्वारा पदार्थका स्वरूपनिर्देश करनेका नाम उपयोग है।
भारतीय दर्शनोंमें 'नयविचार' जैन दर्शनकी एक विशेषता है। पदार्थकी संपूर्णताकी ओर पूर्ण ध्यान दिये बिना, किसी एक विशिष्ट दृष्टिकोणसे विषयको प्रकृतिका निरूपण करना 'नय' कहलाता है । द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नामसे नयके दो भेद है । द्रव्यार्थिक नयका
विषय द्रव्य और पर्यायार्थिक नयका विषय पर्याय है । द्रव्यार्थिक नय . नैगम, संग्रह और व्यवहार भेदसे तीन प्रकारका होता है । ऋजुसूत्र, शब्द,
समभिरूढ तथा एवंभूत भेदसे पर्यायार्थिक नय चार प्रकारका होता है।