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जिनवाणी नयसे पदार्थका एकदेश मालूम होता है । पदार्थके यथार्थ और पूर्ण स्वरूपको जाननेके लिये जैनागम-स्वीकृत स्याद्वादका आश्रय लेना चाहिये । यह स्याद्वाद अथवा सप्तमंगी जैन दर्शनकी एक महानसे महान् विशिष्टता है।
स्याद्वाद पदार्थ अगगित गुणके आधाररूप है। इन समस्त भिन्न गुणोंका पदार्थमें क्रमश आरोप करनेका नाम स्याद्वाद नहीं है। एक एवं अद्वितीय गुणका पदार्थमें आरोपण किया जाय तो उसका सात प्रकारसे निरूपण हो सकता है-उसका वर्णन सात प्रकारसे किया जा सकता है। इस सप्तधा विवरणका नाम स्यावाद अथवा सप्तभंगी न्याय है । उदाहरणार्थ, घट नामक पदार्थमें अस्तित्व नामक गुणका आरोप करे तो उसका निरूपण निम्नलिखित विधिसे सात प्रकारसे कर सकते है
(१) स्यादस्ति घटः अर्थात् किसी एक अपेक्षासे [ किसी एक दृष्टिकोणसे-विचारसे ] घट है ऐसा कह सकते है । परन्तु 'घट है' इसका अभिप्राय क्या है ? इसका यह अर्थ नहीं कि घट एक नित्य, सत्य, अनन्त, अनादि, अपरिवर्तनीय पदार्थरूपमें विद्यमान है। 'घट है। इसका अर्थ यही है कि स्वरूपके विचारसे अर्थात् घटरूपसे; त्व-द्रव्यके विचारसे अर्थात् वह मिट्टीका वना है इस दृष्टिसे; स्व-क्षेत्रके विचारसे अर्थात् अमुक शहरमें (पटना शहरमें) और स्व-काल अर्थात् अमुक एक ऋतु (वसंत ऋतु)में वह वर्तमान है। ___.(२) स्यानास्ति घटः अर्थात् किसी एक अपेक्षासे घट नहीं है । पर-रूप अर्थात् पट-रूपमे, पर-द्रव्यके विचारसे अर्थात् स्वर्णमय