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गाव-बीच-सत्य संबम-सपस्त्याग, अकिपन्य बापर्वाणि धर्म) की अपेक्षा मनाते हैं और प्रत्येक दिन एक धर्म का न्यायान करते है। जबकि स्वेताम्बर सम्प्रदाय के श्रावक इमे माठ दिन मनाने है। बहा इन दिनो मे कही कल्पसूत्र की याचना होती है और कही अन्तकृत सूचकनाग की याचना होती है। और पर्व को नि की गणना माठ होने में 'अष्ट'--आन्हिक (अष्टानितक-अठाई) कहते हैं। साधुबो का पर्दूषण नो चार माम ही है।
दिगम्बगे में उक्त पर्व भाद्रपद शुक्ला परमी में प्रारम्भ होता है और वेताम्बरो में पचमी को पूर्ण होना है। दोनों मम्प्रदायों में दिनो का इतना अन्तर यो ये शोध का विषय है । और यह प्रश्न कई बार उठा भी है। समम वाले लोगो ने पारम्परिक मोहाई बडि हेन ऐम प्रयत्न भी किए है कि पर्युषण मनाने की तिषियों दोनों में एक ही हो । पर, वे अमफन रहे है।
पर्युषण के प्रमग में और मामान्यन भी. जब हम नप प्रोषध आदि के लिए विशिष्ट रूप में निश्चिन निषियों पर विचार करने हैनब हमें विशेष निदंग मिनना है कि--
"एव पर्वमु मर्वेषु चनुर्माम्या पहायने । जन्मन्यपि यथाक्लि ग्वम्व मकर्मणा कृति ।।
- धर्म मा ६९ पृ. २३८ -अप के चतुर्माम के मर्व पवों में और जीवन में भी यथाशन ग्यस्व धार्मिक कुन्य करने चाहिए। (यह विपन गृहस्प धर्म है)। इगी नाक की बाया में पर्वो के सम्बन्ध में कहा गया है कि
"तत्र पर्वाणि चवमुष"बाम्म पनि पुष्णिमा य नहा मावसा हवड पब्ब मासमि पन छक्क, निन्नि अ पम्बाई पामि ॥'
"चाउमट्ठमुट्ठ पुण्णमामी ति मूत्रप्रामाण्यान्, महानिगीचे भान पंचम्यपि पर्वत्वेन विश्रुता । 'भट्ठमी चाउमीन नाण पचमीमु उववाम न करे पन्छित्तमित्यादिवचनान् । – पर्वमु कृन्यानि यथा -पौषधकरण प्रनि पर्व तत्करणामक्ती तु बष्टम्यादिषु नियमेन । यवागम,
'सोनु कालपम्पमु, पसत्यो जिणमा हवा जोगी। अडमि नउमीमु अ नियमेण हवइ पोहियो ।'
-धर्म म० (व्याक्या) ६६ -पर्व इस प्रकार कहे गए है-बष्टमी चतुर्दशी, पूर्णिमा नया अमाबस्या, ये मान के ६ पर्व है और पक्ष के ३ पर्व है। इसमें 'वउद्दमठमदिक