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चिनातन विचारणीय प्रसंग दिगम्बर और पवेताम्बर दोनों परम्परायें ऐमा मानती है कि उत्कृष्ट पर्वपण चार माम का होता है। मी हेतु इमे चतुर्माम नाम से कहा जाता है। दोनो ही मम्प्रदाय के माधु चार मास एक स्थान पर ही वास करते हुए तपम्याओ को करते है। यन-उन दिनो (वर्षा ऋत) में जीवोत्पत्ति विशेष होती है। बोर हिमादि दोप की अधिक मम्भावना रहती है और साधु को हिमादि पाप मर्वषा वर्म है। उमे महावनी कहा गया है।
"पग्बुमवणा कप्प का वर्णन दोनो मम्प्रदायो मे है। दिगम्बरों के भगवती भागधना (मृमागधना) में लिखा है :
"परजोममणकापो नाम वणम । वर्षाकालम्प चनु मामेषु एकत्रावम्यान प्रमण त्याग । विणन्यधिक दिवमगन एकत्रावस्थानमिन्ययमुत्मर्ग कारणापेक्षया नुहीनाधिक वाग्वस्थानम् ।।
पग्जामवण नामक दमवा कल्प है। वर्षाकाल के पार मामो में एकत्र ठहरना--अन्यत्र भ्रमण का त्याग करमा, एक मो बीम दिन एक स्थान पर ठहरना उन्मर्ग मार्ग है। कारण विगेप होने पर हीन वा अधिक दिन भी हो मकान ।। भगवती आग (मूला ग०) आग्वाम ४ पृ० ६१६ । श्वेताम्बरो मे 'पर्युषणाकल्प' के प्रमग मे जीनकल्प मूत्र में लिखा है
'बाउम्मामुक्कोमे, मनरि गइदिया जहण्णेण । ठिनमट्टिनगेमनरे, कारणे बच्चामिनऽणयरे ।।--
-जोन क० २०६५ पृ० १७६ विवरण -'उत्कर्षन पy पणाकल्पाचनुर्माम यावद्भवति, अषाढ पूणिमाया पानिकपूणिमा यावदिन्यर्ष । जघन्यन पुन मप्ननिगविदिनानि, भादपदणुक्लपचभ्या कानिकपूर्णिमा यावदिन्यर्थ - अभिवादो कारणे समुत्पन्ने एकनम्मिन् मामकल्पे पर्युपणाकल्पे वा व्यन्यामित विपर्यम्तमपि कुयु ।'
-अभि० ग० भाग० ५ पृ० २५४ पर्वृषण कल्प के ममय की उत्कृन्ट मर्यादा चतुर्माम (१२० दिन राषि) है। जघन्य मर्यादा भाद्रपदणुक्ला पचमी से प्रारम्भ कर कानिक पूर्णिमा तक (मत्तर दिन) की है।-- कारण विशेष होने पर विपर्याम भी हो सकता हैऐमा उक्त कथन का भाव है।
इस प्रकार जनो के मभी मम्प्रदायों में पर्व के विषय मे बर्ष भेद नही है और ना ही ममय की उत्कृष्ट मर्यादा में ही भेद है। यदि भेद है तो इतना ही है कि (१) दिगम्बर श्रावक इस पर्व को धर्मपरक १० भेदो (उत्तम-समा-मार्व