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________________ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व परख' के बाद जैनेन्द्र जी की 'सुनीता' निकली, पर उसे पढ़कर निराशा हुई। शायद लेखक 'परख' में खींची हुई लकीरों से आगे न बढ़ सकेगा, यह डर होने लगा। लेकिन इनके 'त्याग-पत्र' ने डर निर्मूल सिद्ध कर दिया। इस में वे 'परख' से ऊँचे उठ गए हैं। विषय और कथानक तो उसका भी पुराना है, पर विचार बिल्कुल नए थे और उन्हें अाधुनिक ढंग से प्रस्तुत किया गया था । लेखक ने न तो उपदेशक का आसन लिया है और न जज की ही कुरसी संभाली है, किंतु उन्होंने बहुत ही ईमानदारी से हमारे समाज की व्यवस्था के एक अंग का जीता-जागता चित्र खींच कर रख दिया है । इस उपन्यास में जैनेन्द्र जी ने मृणाल नाम की एक युवती के प्रेम की, विवाह की, और पतन की कहानी कही है । उपन्यास मे चरित्र-चित्रण खूब हुआ है और उसकी मृणाल तो आज भी हिंदी में अपने ढंग की एक ही है। इतने बड़े उच्च कुल में जन्म लेकर वह इतना नीचे गिरी कि एक कोयला बेचने वाले बनिए के साथ चल दी। लेकिन इतना भारी पतन हो जाने पर भी उसकी आत्मा की ऊँचाई और निर्मलता में जरा भी अन्तर नहीं पड़ा। बड़ी से बड़ी विपत्ति झेलने पर भी उसने उफ़ तक न की । पर लेखक ने एक बात में मृणाल के साथ जबरदस्ती की है। उन्हें उसके शरीर की इतनी दुर्दशा न करवानी चाहिए थी। इतनी बड़ी आत्मा का पतन इतना भद्दा नहीं हो सकता। प्रेमचंद की सुमन भी तो गिरी थी पर एक शान से । खैर, कुछ भी हो त्याग-पत्र में जैनेन्द्र जी ने एक नया प्रादर्श रखा और यह उपन्यास लिख कर उन्होंने अपना ही नहीं हिंदी का भी मान बढ़ाया।। 'त्याग-पत्र' के अनन्तर उनका उपन्यास 'कल्याणी' निकला । यह उपन्यास एक शिक्षित महिला के दिल के द्वंद्व की करुण कहानी है, जो संस्कृतियों के संघर्ष की वजह से दो आदर्शों में पिस रही थी। कल्याणी विलायत पास लेडी डॉक्टर थी। उसकी माँग केवल इतनी थी कि या तो उसे पूर्ण रूप से गृहिणी बना कर रक्खा जाय, या डॉक्टर बनने की पूरी आजादी दी जाय। दोनों काम उससे न हो सकेंगे। दोनों काम करते हुए भारतीय नारी के पतिव्रत धर्म का पालन करने का जो आदर्श रखा गया है, उसे वह निभा न सकेगी । उसके पति चाहते थे दोनों बातें । डॉक्टरी रुपए के लिए और गृहिणी बरसों से दिल में घर किए संस्कारों की शांति के लिए। पहली बात के लिए वे अनुनय-विनय करते थे और दूसरी बात के लिए कल्याणी को मजबूर । इसलिए पति-पत्नी में बहुधा झगड़ा हो जाया करता था और नौबत मार-पीट तक भी पहुँच जाती थी। पति की कौन कहे, किंतु कल्याणी के भावुक मन की बेचैनी तो दिम-दिन बढ़ती जा रही थी । वह कविता भी करती थी न ! पति समझाते-बुझाते, मित्र लोग ढाढस देते,
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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