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________________ श्री पृथ्वीनाथ शर्मा जैनेन्द्र के स्वतंत्रता-पूर्व के उपन्यास बात देश के बंटवारे से पहले की है । मैं लाहोर रेडियो स्टेशन पर एक वार्ता कहने गया था। वहीं उर्दू के एक प्रसिद्ध अफ़साना-नवीस से भेंट हो गई। साहित्यिक चर्चा चलते-चलाते जैनेन्द्र कुमार तक पहुँच गई । उन उर्दू-लेखक की राय में हमने जैनेन्द्र को यूं ही ऊँचे उठाया हुआ था। उनकी कृतियों में टेकनीक का अभाव होने के कारण वे बढ़िया नहीं कही जा सकतीं और किंचित् दंभ प्रदर्शित करते हुए उन्होंने कहा कि वे हिन्दी के क्षेत्र में आने की सोच रहे थे ताकि जैनेन्द्र को Expose कर सकें । मैंने उनसे यह निवेदन किया कि वे अवश्य हिंदी-क्षेत्र में प्रायें, हम उनका स्वागत करेंगे, किंतु जिस भावना से प्रेरित होकर वे पाना चाहते हैं उसे वे यदि त्याग सकें तो ठीक रहेगा, क्योंकि जैनेन्द्र एक स्वाभाविक कथाकार हैं जो कि किसी भी टेकनीक के मुहताज नहीं । इसलिए उनके बिगाड़े जैनेन्द्र का कुछ भी बिगड न सकेगा। उर्दू के वे अदीब कुछ ही काल के बाद सचमुच हिंदी में आए और आज भी उनकी रचनाएँ हिंदी में निकल रही हैं । पर वे हिंदी-साहित्य में कहीं पहँच नहीं पाए । थोड़ी-बहुत ख्याति जो उन्हें मिली है वह उर्दू का लेखक होने के नाते ही। और इधर जैनेन्द्र कुमार जो आज अपने को कहानी लेखक भी नहीं मानते, अब भी हमारे साहित्य में एक अलग स्थान रखते हैं। वे केवल अपने स्वतन्त्रता-पूर्व के उपन्यासों के बल पर ही हिंदी कथा-साहित्य में एक उच्चासन के अधिकारी रहेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । __ जैनेन्द्रजी का पहला उपन्यास 'तपोभूमि' था, पर चूंकि उसे उन्होंने श्री ऋषभचरण जैन के साथ मिलकर लिखा था, इसलिए उसका उल्लेख विशेष आवश्यक नहीं । उनका दूसरा उपन्यास था 'परख' । यह उपन्यास समालोचकों की नज़रों से ऊँचा अँचा । यह तो मानना ही पड़ेगा कि कुछ अपरिपक्वता होने के अतिरिक्त भी यह उपन्यास हिंदी में एक नई चीज़ थी । कहानी में तो वही पुराना प्रेम का त्रिकोण था, पर कहने के ढंग में, चरित्र-चित्रण में मौलिकता थी। कट्टो के चरित्र-चित्रण में लेखक सफल हुए हैं । उस अपढ़ लड़की के त्याग और आत्माभिमान की कहानी खूब उतरी है। वह अपने त्याग के बल से खुद ही नहीं बचती, बल्कि अपने प्रेमी सत्यधन को भी गिरने से बचाती है । ( ६३ )
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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