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________________ जैनेन्द्रकुमार विचारशील तथा उच्चपदस्थ व्यक्ति को भी इस साधना-मार्ग में प्रवेश करने का निषेध करती है। प्रश्न यह है कि लेखक ने कौन-सी साधना मृणाल को सौंपी है ? प्रत्यक्ष में उपन्यास किसी विशेष साधना-पथ का संकेत नहीं करता, तथापि लेखक की दृष्टि में मृगगाल एक उत्कृष्टतम साधिका बनी हुई है। ____ इसके प्रागे हम मृणाल को एक परिवार में बच्चों की देख-रेख करते और उससे मिलने वाले द्रव्य से जीविका चलाते देखते हैं। यहाँ अवश्य हमें यह प्रतीत होता है कि मृणाल अब स्वात्मनिर्भर हो गई है और वह स्वतन्त्र रूप से अपनी मर्यादा की रक्षा करती हुई अपना जीवन-यापन कर सकती है; परन्तु लेखक मृणाल की इस संतोषजनक परिस्थिति को अधिक दिन कायम नहीं रखता। उसकी नौकरी छूट जाती है और वह फिर पूर्ववत विवशता पूर्ण अनिदि' ट मार्ग पर चलने लगती है। अंत में वह अत्यन्त शोचनीय और विट प परिस्थितियों में पड़कर रुग्ण हो जाती है और कुछ समय बाद 'घुट-घुट कर प्राण त्याग देती है। यहाँ भी किसी सुस्पष्ट जीवनक्रम के स्थान पर हमें मृणाल की किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति का ही बोध कराया जाता है। __ एक स्थान पर मृणाल अपनी-जैसी आश्रयहीन नारियों का एक संगठन तैयार करती हुई दिखाई गई है । इस अवसर पर प्रमोद से उसकी कुछ बातचीत भी होती है । प्रमोद के आग्रह करने पर भी वह उसके घर आने को तैयार नहीं होती; परन्तु उससे आवश्यक द्रव्य लेकर निराश्रित नारियों की सहायता में लगाने का विचार करती है। प्रमोद से उसे आवश्यक द्रव्य नहीं मिलता । इस प्रसंग में लेखक की दार्शनिकता यह सुभाती प्रतीत होती है कि अच्छे-से-अच्छे सुधारवादी व्यक्तियों द्वारा भी अत्यावश्यक सामाजिक कार्य में यथेष्ट सहयोग मिलना सम्भव नहीं होता । उसकी यह उपपत्ति हमें समाज की एक सामान्य प्रवृत्ति का परिचय भर कराती है; परन्तु लेखक इस घटना की योजना द्वारा भी मृणाल के चरित्र के उत्कर्ष को बढ़ाता है और उसकी दयनीय दशा के प्रति संवेदना उत्पन्न करता है । समस्त उपन्यास में इसी भावुक और रहस्यमय प्रणाली के प्रयोग द्वारा हमारी सहानुभूति खींची गई है; परंतु प्रश्न यह है कि मृणाल के चरित्र में वास्तविक गरिमा लेखक कहाँ तक ला सका है ? दूसरा प्रश्न यह है कि मृणाल को विना वास्तविक चारित्रिक गरिमा दिए, उसके प्रति हमारी संवेदना आकृष्ट करना कहाँ तक स्वस्थ साहित्यिक उद्देश्य कहा जा सकता है ? हम थोड़ी देर के लिए यह भी मान लें कि जैनेन्द्र का उद्देश्य नारी की वर्तमान सामाजिक असहायावस्था के चित्रण द्वारा समाज की व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह उत्पन्न करना है, मृणाल को कष्टपूर्ण और अनैतिक स्थितियों में रख कर
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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