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________________ प्राचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी जैनेन्द्रकुमार हिन्दी में उपन्यासकार जैनेन्द्र की ख्याति एक विचारक और चिंतक के रूप में अधिक है। उनकी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक गुणों के अतिरिक्त उनके विचारों और दार्शनिकता को भी ढ़ढ़ने की चेष्टा की गई है। यों तो प्रत्येक लेखक में कछन-कुछ बौद्धिक विचारणा रहती है, परंतु कुछ लेखकों में वह इतनी प्रमुख होती है कि उसी के आधार पर उसकी समस्त कृति का संघटन होता है और कभी कभी तो एक विशेष विचारधारा के निर्देश के लिए ही उस रचना का निर्माण किया जाता है । जैनेन्द्र जी के उपन्यासों में प्रारम्भ से ही एक बौद्धिक या दार्शनिक दृष्टिकोण रहा है। उनकी परवर्ती कृतियों में तो दार्शनिकता इतनी प्रमुख हो गई है कि उनका साहित्यिक स्वरूप ही गोग्ग हो गया है । साधारण विचारकों की भांति जैनेन्द्र जी के विचार उनकी कृतियों में सरलतापूर्वक नहीं ढ़ ढ़े जा सकते । उनमें एक अस्पष्टता रहा करती है और पाठकों के विशेष परिश्रम करने पर ही उनके विचार-सूत्र उपलब्ध होते हैं । उनके विचारों की यह रहस्यात्मकता या स्पष्टता किस कारण है, यह कहना कठिन है। कदाचित् जैनेन्द्र जी रचना के प्रभाव को तीव्र करने के लिए एक अनिर्दिष्ट विचारणा उसमें मिला देते हैं । कभी-कभी कला में अस्पःटता भी आकर्षण का हेतु बन जाती है । यह तो मानना ही पड़ेगा कि साहित्यिक रचनाओं में वस्तु-चित्रण और भाव-चित्रण ही मुख्य होते हैं । यदि उनमें प्रत्यक्ष रूप से विचार-धारा का संयोग करा दिया जाता है, तो रचना में उपदेशात्मकता पा जाने का भय रहता है । कदाचित् इसी उपदेशात्मकता के आरोप से बचने के लिए जैनेन्द्र जी अपने उपन्यासो में जो दार्शनिकता उपस्थित करते हैं, वह अस्पष्ट और रहस्यात्मक रहा करता है । जैनेन्द्रजी एक भावुक कथाकार हैं; अतएव उनके विचारों में भी भावुकता का होना स्वाभाविक हैं। जब कोई विचारधारा भावना पर आश्रित हो जाती है, तब उसके तार्किक पक्ष को अथवा प्रमाण-प्रमेय संबंध को ढूढ़ निकालना कठिन हो जाता है । जैनेन्द्र जी की दार्शनिक अस्पष्टता का यह भी एक कारण है। अधिकतर उनकी कृतियों में भावुकता का इतना सशक्त प्रवाह है कि उनकी मूलवर्ती विचारधारा उक्त भावुकता में ही डूबी रहती है।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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