________________
५२
जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
किस उद्देश्य से लिखी गयी है, यह समझ कर अपनी सहानुभूति उसे देनी चाहिये । सहानुभूति के बिना रसोद्बोधन सम्भव नहीं है और तब जयवर्धन से साधारण पाठक को भी प्रभूत रसोपलब्धि हो तो उसमें प्राश्चर्य नहीं । इस पुस्तक की विशेषता और अपील अन्य प्रकार की अन्य स्तर की है । मैं समझता हूँ कि प्रतिभौतिकतावाद से त्रस्त विदेशी की दृष्टि में भारत की महत्ता की खोज में यह विचार-मंथन की उपलब्धि विशेष सार्थक है । पूर्व और पश्चिम के बीच श्राज जिस विचार- सेतु के निर्माण की प्राशा की जा रही है, उस दिशा में पुस्तक बहुत महत्त्व की है । यह कई दिनों तक बार-बार पढ़ी जायगी और उसका महत्त्व भविष्य में और भी निखरेगा; चूँकि इस ग्रन्थ में भविष्यवाणी का-सा गुण है, जो श्रेष्ठ कलाकृति की एक प्रधान कसौटी है ।