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________________ ४५ जैनेन्द्र जी का जयवर्धन ज्यादा जान सकोगे। सब जानकर किसी को न पाया तो कुछ न पाया, कुछ न जाना।" ___ "यह नेहरू का चमत्कार किसका था? क्या उनका अपना था ? या उस गाँधी का था जो नेहरू के दिमाग में न सही दिल में तो धड़कता ही था। विचार के और काम के गांधी को नेहरू दिमाग से हटा सकते थे । पर प्यार के गाँधी की धड़कन तो नेहरू के अन्दर कभी चुप नहीं हो पाती थी।" (पृ० ५६ ) "जगत सब पीछे हो, आत्मा पहले ।" (पृ० ११४ ) "वह अर्थ-रचना जो हर दो पड़ोसियों को एक हित में मिलाये, राज्य के किए हो नहीं सकती। राज्य चाहे तो भी उसे सींच नहीं सकता । कारण, राज्य मशीन है और केन्द्र है और यह रचना इतनी अात्मिक और विकेन्द्रित होगी कि स्वयं आदमी हो रहेगा । हर आदमी अपना केन्द्र और जग का केन्द्र ।" (पृ० १२०) _ "कर्म का मूल अकर्म ही है । उसी तरह जैसे नारियल पर के जटाजूट और उसके बाद पत्थर से खप्पर का मूल्य यही है कि भीतर गरी हो। गरी अकर्म है, कर्म तो वह जटाजूट ही है ।'' (पृ० २२१) ___ कई दार्शनिक और समाज-वैज्ञानिक सूक्तियाँ उदाहरण के तौर पर दी जा सकती है-- "मनुष्य से बड़ा न सत्य है न विचार ।" "ईश्वर नहीं हो सकता जो मनुष्य से विमुख हो, है तो वह मानव में।" (पृ० १२) "समाधान एक ईश्वर है। बाकी उलझन है, प्रश्न है, क्योंकि खड है। दीखने में तो इसलिए कि वह होने से कम है।'' (पृ० २६) "प्रासमान में उड़ने फिरने से हम बड़े नहीं हो जाते । यह तो वही हा कि गीध सोचे कि मैं ऊँचा हूँ।” (पृ० ५८) "जगत अर्थ पर नहीं, पुण्य पर चलता है।” (पृ० ११६) "प्रेम ही पास रखें, शेष सब दूर कर दें, तो लगता है कुछ नहीं रह सकता जो आदमी को न मिल आये।” (पृ० १६०) "स्टेट कैपिटैलिज़म कैपिटैलिज्म का बुरे से बुरा रूप है।" (पृ० २६१) "इतिहास का सार तब प्राप्त हुग्रा मानना चाहिए जब मानव-विकास का ग्राफ ही मानो उससे उदित होता दीखे ।" (पृ० ३१५)। "जनतंत्र क्या दलाधीन ही रहेगा ?" (पृ० ४२४) ऐसे अनेक स्थल दिये जा सकते हैं । प्रायः प्रति पृष्ठ उनसे भरा है ।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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