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________________ जैनेन्द्रकुमार : व्यक्तित्व दर्शन २५ भी मिलता । तभी उनकी कथा - कृतियाँ एक बेचैनी-सी जगाकर रह जाती हैं। तभी लगता है कि उनकी कट्टो, उनकी सुनीता, उनकी मृणाल उनके विरुद्ध एक आरोपपत्र, एक अभियोग पत्र लिए जनता की अदालत में खड़ी हैं । जैनेन्द्र ने यद्यपि इन बेज़बानों को सहनशीलता के माध्यम से वारणी प्रदान तो की है, किन्तु उनके प्रति सहानुभूति-संवेदना जैसी कुछ, जितनी कुछ जगनी चाहिए, वह जग नहीं पाती । - और विचारक जैनेन्द्रकुमार के सम्बन्ध में आलोचक कहता है कि उनकी प्रक्रिया मात्र मंथन की प्रक्रिया है, किन्तु मंथन जब तक नवनीत न दे पाये, उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती। अगर दर्शन में साधना और सिद्धि जैसी स्थितियाँ संभव हैं, तो कहेंगे कि जैनेन्द्र का विचारक अभी साधक है । संभवत: बात ऐसी कुछ भी हो सकती है, जैसी आचार्य विनोबा भावे के सम्बन्ध में कही जाती है । सर्वोदयी दर्शन को व्यवहार में फैलाने का प्रयत्न विनोबा कर रहे हैं, किन्तु निहित स्वार्थ ढंग-ढंग से बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं। तभी एक सहज सत्य लोगों को अत्यन्त स्पन्दित नहीं कर पा रहा है। संभवतः भौतिकता के निविड़ वातावरण में सर्वोदयी दर्शन की विचारधारा अभी गरम तवे की बूँद बनी हुई है । लेकिन भौतिकता का अतिरेक एक दिन स्वयं जब प्राध्यात्मिकता के लिए विकल हो उठेगा, उस दिन सम्भवत: जैनेन्द्र की वाणी का मर्म जन मानव अधिक समझ पायेगा जैनेन्द्र कथाकार हैं, विचारक हैं, दार्शनिक हैं । 1
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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