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________________ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व अपने बाप के नाम की जगह प्यारेलाल लिखा पाया और संरक्षक की जगह अपने मामा का नाम पाया, तब पता लगा कि मामा, मामा थे; बाप नहीं थे। कहीं ऊपर हम यह भी कह पाये हैं कि बाल-जैनेन्द्र को अपना प्यार उँडेलने के लिए घर में कोई न दीखता था। इसलिए संग साथ में जब इनका ममेरे भाई का जन्म हुआ तो इनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । अगर इनका बस चलता तो उसी वक्त उसे अपने पास ले आते और क्या अचरज कि उसे कुछ खिलाने में लग जाते । क्योंकि गुरुकुल में यह अक्सर दूर से अपने भाई को ताका करते थे और जब वह इनकी तरफ देखता था तो दोनों मुस्करा देते थे और फिर यह मुस्कराहट हँसी में तबदील हो जाती थी। होनहार की बात कि गुरुकुल में भी इनसे छोटा सिर्फ इनका ममेरा भाई ही था, बाकी सब बड़े थे । गुरुकुल की स्थापना सन् ११ में हुई थी और उसके शुरू के पाँच ब्रह्मचारियों में से यह भी एक थे । जैनेन्द्र का गुरुकुल-जीवन ___ "जैनेन्द्र'' यह गुरुकुल का दिया हुया नाम है । सन् ११ को वैसाख सुदी तीज से पहले जैनेन्द्र का नाम ग्रानन्दीलाल था। गुरुकुल में सन् ११ के खत्म होते-होते ४० ब्रह्मचारी हो गये थे। उन ४० में सिर्फ एक ही विद्यार्थी था जो इतना ही कुशाग्र बुद्धि था जितना जैनेन्द्र, और उसका नाम था रामेन्द्र । गुरुकुल के अधिष्ठाता लीक-लीक चलने वाले आदमी नहीं थे। वह मौके-मौके पर वही करते थे जो उनको ठीक सूझता था । गुरुकुल का आम नियम यह था कि सुबह चार बजे उठना और रात को नौ बजे सो जाना । पर जैनेन्द्र और रामेन्द्र इन दोनों ही के लिए यह काम मुश्किल ही नहीं, असंभव थे । इनको नौ बजे तक जगाना इतना ही बुरा काम था, जितना किसी को रस्सी बांधकर खड़ा रखना और चार बजे उठाना उतना ही मुश्किल काम था, जितना खाली बोरे को खड़े रखने की कोशिश करना । देर से उठने और जल्दी सो जाने के ऐबों (अगर यह ऐब हैं) के साथ-साथ इन दोनों में पढ़ने-लिखने के अनेक गुण थे, इसलिए यह दोनों चार बजे उठने और नौ बजे सोने के अपवाद बनाये गये और इस अपवाद की वजह से इनके साथी ब्रह्मचारी इनसे कोई डाह नहीं करते थे। इनका आदर करते थे, और इनको ठेकेदार के नाम से पुकारते थे । ठेकेदार यों कि यह अपना पाठ शाम को जब सुना दें तभी से यह सोने के लिये आजाद थे । उठने के लिये यों आजाद थे कि गुरुकुल की खास क्रियाओं में यह ठीक वक्त पर शामिल हो जाते थे । गुरुकुल की पढ़ाईलिखाई में जनेन्द्रकुमार को सिर्फ होशियार ही नहीं कहा जा सकता, काफी से ज्यादा होशियार कहना पड़ेगा, क्योंकि उम्र के लिहाज से तीसरी क्लास में सबसे अव्वल
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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