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________________ बाल जैनेन्द्र ११ इनके साथ उसने जन्म लिया या नहीं, यह पता नहीं । कोई यह न समझे कि इन्हें भूख ही नहीं लगती थी और यह खाने के लिये कोई चीज़ ही नहीं माँगते थे या यह कि बहुत छुटपन में भूख से कभी रोये ही नहीं । नहीं-नहीं, यह छुटपन में भूख से ऐसे ही रोने थे जैसे कि और बच्चे । पर जब यह छः बरस के थे, तब स्कूल से ११ बजे जब यह बहुत भूखे लौटते थे तो खाना नहीं माँगते थे । माँ से आते ही बस यह कहते थे कि माँ मेरे पेट में दर्द होता है। मां इन्हें खूब पहचानती थी कि यह दर्द नहीं है, भूख की पुकार है और वह इनके दर्द का वही इलाज करती थी कि इनको खाना खिला देती थी और इनका दर्द ठीक हो जाता था । भूख से जो तकलीफ इनके पेट में होती थी, उस तकलीफ का नाता यह भूख से जोड़ना पसन्द नहीं करते थे । उसका ज्यों का त्यों हाल अपनी माँ को बता देते थे । दूसरे शब्दों में भूख का नाम इन्होने दर्द रख छोड़ा था और दर्द का दूसरा नाम वेदना है । और दार्शनिकों की बोली में भूख प्रतिकूल वेदना के सिवाय औौर है ही क्या ? यों अगर पढ़ने वाले चाहें तो बालजैनेन्द्र को बाल- दार्शनिक भी कह सकते हैं । घराने के रिवाज के मुताबिक इनका विद्यारम्भ संस्कार, श्रा, ई से न होकर अलिफ, वे, ते, से हुआ और होनहार की बात कि सात बरस की उम्र में ही यह एक ऐसे गुरुकुल में दाखिल हो गये, जहाँ क, ख, ग, ज, नागरी अक्षरों में शामिल समझे जाते थे । इनका शीन क़ाफ ऐसा ही दुरुस्त है, जैसा फारसी - दाँका । इनके मामा के घराने का भी शीन क़ाफ दुरुस्त था, क्योंकि उस घर में औरतों को छोड़कर सभी फारसी पढ़ े थे और अब तीस - पैंतीस बरस से दिल्ली में रहने की वजह से उस शीन क़ाफ को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है और यह उर्दू साहित्य में इसी वजह से काफी रस ले लेते हैं । कहीं ऊपर यह कहा गया है कि यह १५ बरस तक अपने मामा को अपना पिता ही समभते रहे । इसकी एक वजह तो यह थी कि जब यह चार बरस के थे तब इनके घर में इनके एक ममेरे भाई का जन्म हुआ । वह जब बोलने के काबिल हुआ तो इनकी देखादेखी अपने बाप को मामा कहकर पुकारने लगा । इस बारे में घर में से किसी ने ध्यान नहीं दिया और कोई रोकथाम भी न की गई । अब इनके लिए कोई मौका ही न रह गया कि यह मामा और बाप में कोई भेद कर सकें और कभीकभी अपने ममेरे भाई को अपनी माँ का दूध पीते देखकर तो इन्हें यह शक ही न रह गया कि इनका ममेरा भाई इनका सगा भाई नहीं है । दूसरी वजह यह हुई कि सात बरस की उम्र में बाल- जैनेन्द्र जैसे ही गुरुकुल में दाखिल हुये तो चार बरस का ममेरा भाई भी इनके साथ था । यह दूसरी बात है कि दोनों एक क्लास में नहीं थे । बस एक दिन १५ बरस की उम्र में जब जैनेन्द्र ने गुरुकुल का प्रवेश रजिस्टर देखा और उसमें
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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