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________________ बाल जैनेन्द्र आने पर भी सिर्फ इस वास्ते यह चौथी क्लास में नहीं चढ़ाये गये थे कि चौथी क्लास की पढ़ाई का बोझ उस उम्र के बालक के लिये, गुरुकुल के मुख्य अधिष्ठाता की नज़र में काफी से ज्यादा था । हमें याद है कि यह सुनकर जैनेन्द्र को काफी तकलीफ हई थी, पर मर्जी के माफिक घूमने-फिरने के प्रानन्द में वह तकलीफ जल्दी ही भुलाई जा सकी थी। एक बार मुख्य अधिष्ठाता का एक हल्का-सा चपत खाकर यह बुरी तरह बिगड़े थे, और वह इस वजह से कि जिस बात के लिये इन्हें सज़ा मिली थी, उसमें उनका कोई कसूर नहीं था। इन्होंने अपनी सफाई देकर यह पूरी अच्छी तरह साबित कर दिया कि उनको जो चपत लगा है, वह एक बेकसूर को लगा है। मुख्य अधिष्ठाता एक समझदार आदमी थे, उन्होंने इनसे माफी मांगी । जिसके जवाब में यह बोले, "आप के माफी मांगने से जो चपत मेरे लग गया है वह बेलगा हुआ तो नहीं हो सकता ?" इस पर अधिष्ठाता जी बोले, "तो फिर भाई चपत की जगह चपत मारलो।" इसके जवाब में इन्होंने कहा कि ऐसा करना तो और भी बुरा होगा, और ऐसा करने से भी मुझको लगा हुआ चपत बेलगा हुआ कैसे हो सकता है । आखिर फैसला इस बात पर हुआ कि अधिष्ठाता जी आइन्दा इस बात का बहुत ख्याल रखेगे कि किसी बेकसूर को छोटी से छोटी सजा भी न दी जाय । जब का यह जिक्र है, उस वक्त जैनेन्द्रकुमार का नवां बरस चल रहा था। यह हम कह ही चुके हैं कि जैनेन्द्रकुमार पढ़ाई-लिखाई में सबसे आगे थे । छः महीने पढ़ने-लिखने से छुट्टी पाकर और अपना समय खेल-कूद में बिताकर भी किसी से पीछे नहीं रहे । यह सब तो था, पर बोलने और लिखने में यह अपनी क्लास में आखिरी सिरे पर थे । यह ठीक है कि यह अपनी क्लास में सबसे छोटे थे, पर इससे क्या । क्लास में जब सबसे अव्वल थे तो बोलने और लिखने में भी अव्वल होना चाहिये था। इनकी क्लास में यह नौ बरस के थे और बाकी सब बारह और तेरह के बीच के थे। थोड़ा-थोड़ा तो सभी बोल लेते थे, पर उनमें से तीन-चार तो ऐसे थे जो अचानक दिये हुये विषय पर पन्द्रह-बीस मिनट तक बोल सकते थे। उनमें से एक ब्रह्मचारी ने तो एक मशहूर उपदेशक के व्याख्यान का खंडन पांच मिनट की तैयारी के बल पर सभा के मंच से किया था। पर इन सब बातों का कभी कोई असर जैनेन्द्रकुमार पर नहीं हुआ । वह गुरुकुल की सभा में कभी एक मिनट बोल कर नहीं दिये और न कभी गुरुकुल के हाथ लिखे मैगजीन में अपने नाम से एक लाइन दी । अध्यापकों और लोगों ने कभी-कभी मजबूर भी किया, पर मुख्य अधिष्ठाता ने उन पर कभी कोई जोर नहीं डाला। और ब्रह्मचारियों के लिहाज से इनकी खुराक काफी कम थी। इतनी कम थी
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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