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जैनेन्द्र के जयवर्द्धन- पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण
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भाग्यवादी है । वह अभिव्यक्त होता है - " किस्मत बड़ी चीज़ है । उसके खिलाफ लड़ना व्यर्थ है ।” पुनः, हरिप्रसन्न के ही शब्दों में, “भाग्य के हाथ में सब कुछ है । लेकिन रुकना कभी श्रेयस्कर हुआ है ? साँस रुकती है, उसे मौत कहते हैं । गति रुकती है, तब भी मौत है । हवा रुकती है, वह भी मौत है । रुकना सदा मौत है । जीवन नाम चलने का है """"
जैनेन्द्र भाग्य की सत्ता सर्वदा स्वीकार करते हैं । वह भाग्य को सर्वोपरि मानते हैं । भाग्य को उन्होंने चरम सत्ता माना है । उसके विरुद्ध, जैनेन्द्र के अनुसार युद्ध करना व्यर्थ है । मेरी सम्मति में, भाग्य को जीवन में इतना बड़ा महत्व देना जीवन- व्यक्तित्व का अपमान करना है । भाग्य जीवन की चरम सत्ता नहीं है । मानव तथाकथित भाग्य- सत्य पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
बुद्धिवाद के युग में भाग्यवाद की स्थिति शोचनीय हो गई है । भाग्यवाद हमें जीवनमयी कर्मठता का सुपरिचय नहीं देता । हमें वह अकर्मण्यता का दिशा- दर्शन प्रदान करता है । अकर्मण्यता से परिपूर्ण जीवन - शैथिल्य भाग्यवाद की देन है । काँतिवादी हरिप्रसन्न का भाग्यवादी होना जंचता नहीं, प्रभावोत्पादक नहीं । क्रान्ति का पुजारी भाग्य का पुजारी नहीं होता, वह भाग्य के समक्ष घुटने नहीं टेकता । वह भाग्य के विरुद्ध अस्त्र उठाता है । क्रान्ति का सच्चा पुजारी यह कभी नहीं कहेगा कि "किस्मत बड़ी चीज़ है । उसके खिलाफ लड़ना व्यर्थ है ।" तब क्या हरिप्रसन्न कान्ति का सच्चा पुजारी या बहुत बड़ा पुजारी नहीं है ? जीवन में भाग्यवाद को बड़ा-से-बड़ा स्थान प्रदान कर स्वस्थ जीवन दर्शन नहीं दिया जा सकता । भाग्यवाद मनुष्य की जीवनमयी गति को कुंठित कर देता है, उन्नति और उत्सर्ग का मार्ग अवरुद्ध करता है ।
जैनेन्द्र का भाग्यवाद बौद्धिक दृष्टिकोण नहीं उपस्थित करता | जैनेन्द्र का भाग्यवाद मनुष्य के लिए आगे का हर रास्ता हमेशा के लिए बन्द कर देता है ।
लेकिन रुकने को जैनेन्द्र जीवन में स्वीकार नहीं करते । जैनेन्द्र के शब्दों में, 'रुकना सदा मौत है । जीवन नाम चलने का है ।"
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भाग्यवाद के अनन्य पुजारी जैनेन्द्र का यह जीवन-संदेश सचमुच कार्यान्वयन की अनुभूति की अतल गंभीरता में प्राप्त करने योग्य अवश्य है । किन्तु एक श्रोर यह कहकर कि “किस्मत बड़ी चीज है । उसके खिलाफ लड़ना व्यर्थ है", और दूसरी ओर यह कहकर कि "रुकना सदा मौत है । जीवन नाम चलने का है" - जैनेन्द्र विरोधाभास उपस्थित करने में विलक्षणता का परिचय देते हैं । भाग्यवाद ज़िन्दगी में रुकने का सिद्धान्त है, गदले ठहराव का सिद्धान्त है । जीवन चलने का नाम है । रुकना मौत है । चलना ज़िन्दगी है । जैनेन्द्र जी से मैं यह जानना चाहूँगा कि जीवन