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जैनेन्द्र के जयवर्द्धन-पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण करण प्रदान किए हैं । जैनेन्द्र की व्यक्ति-सापेक्षी अन्तर्मुखता समष्टि का अपमान नहीं करती।
खेद है कि सामाजिकता का वर्गीय वैशिष्ट्य व्यष्टि का सम्यक् उद्घाटन नही करता, आधारभूत व्यष्टि का मूल्य निर्धारण और मूल्य-आकलन नहीं करता, किन्तु अस्तित्त्व के आधारभूत व्यक्ति के अन्तर्बोधात्मक नारी-संदर्भ में पौरुषपूर्ण व्यक्तिसापेक्षवाद और अवदमित रति की व्यक्ति-सापेक्षता का स्वरूप प्राकलन साहित्य के विकास-आलोक में आवश्यक अश्य है।
जब व्यक्तिबोधी चारित्रिकता सामाजिकता के वर्गवाद से पीड़ित थी, जब वह व्यक्ति-बोधात्मक सामाजिक सामाजिकता में अपना व्यक्तित्व खोकर समाजत्व का अन्ध प्रतिपादन कर रही थी-तब साहित्य के ऐतिहासिक विकास-क्रम में व्यक्ति के प्रश्न लेकर जैनेन्द्र समाज और साहित्य-समाज के समक्ष उपस्थित हये । साहित्य के ऐतिहासिक विकास क्रम में जैनेन्द्र प्रेमचन्द की प्रतिक्रिया है या प्रेमचन्द के पूरक अथवा प्रेमचन्द के बाद का नया अध्याय-इस प्रश्न का निराकरण विस्तत शोध का विषय है । परन्तु, इतना सुनिश्चित है कि जैनेन्द्र ने व्यक्ति समाज को अभिव्यजित किया है, व्यक्ति-समाज में समाज-व्यक्ति को समाहित करने का प्रयत्न किया है। जैनेन्द्र ने व्यक्ति-सापेक्षवाद को समिष्ट-चेतना से प्राणप्रतिष्ठित किया । समष्टि. “अनुरूपता के वातावरण में जैनेन्द्र को व्यक्ति-चेतना आलोकित है । 'व्यतीत' उपन्यास के व्यक्ति-सापेक्षवाद की समष्टि-निरपेक्षता अपवाद अवश्य है । हिन्दी में जनेन्द्र का प्रागमन समष्टिजन्य व्यक्ति-सापेक्षवाद के प्रवर्तक के रूप में हुआ।
जैनेन्द्र का समष्टि वाद, प्रेमचन्द के प्रतिकूल, जैनेन्द्र के व्यक्ति-सापेक्षवाद की देन है । जैनेन्द्र के प्रतिकूल प्रेमचंद के समष्टि वाद ने समष्टि के आलोक में कथाकार प्रेमचंद को व्यक्ति-निर्माण के उपकरण प्रदान किये । समष्टि-यज में प्रेमचंद ने व्यष्टि की आहुति दे दी। जैनेन्द्र ने ऐसा नहीं किया।
प्रेमचंद में व्यक्तिबोधात्मक अनुत्तरदायित्व है, व्यक्तिबोधात्मक उत्तरदायित्व का उज्ज्वल सौंदर्य जैनेन्द्र में है । जैनेन्द्र का समाजबोधक जैनेन्द्र के व्यक्तिबोध की देन है । जैनेन्द्र व्यक्तिबोधात्मक समाजबोध के प्रतिपादक हैं। प्रेमचंद ने समाज बोधात्मक व्यक्तिबोध को ही प्रश्रय दिया।
जैनेन्द्रप्रतिपादित नारी-सत्यों की व्यक्तिबोधात्मकता जीवन-संगति, भाव-संगति और प्रभाव-संगति में है। व्यक्तिबोधात्मक नारी-सत्य जगेन्द्र का विषय है-या, यह कहिये कि जैनेन्द्रवादी विषय है । जैनेन्द्रवादी नारी अन्तश्चेतना की यथार्थता से अनुप्राणित है । जैनेन्द्र में नारी-सत्यों की व्यक्तिबोधात्मकता है। जैनेन्द्र ने नारी के सम्पूर्णत्व को व्यक्ति-सत्यों की जीवन-संगति में ग्रहण किया है । जैनेन्द्र ने नारी के