SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व कूटचक्र में वह 'त्याग' (बलिदान) के लिये विवश है | 'त्याग' श्रौर 'बलिदान' का यह घोष - क्या यह त्याग 'बलिदान' था (?) बात मन को स्वीकार नहीं । क्या यह उसके मन का क्लेव्य नमित समझोता नहीं था ( ? ) ' जयवर्द्धन' का यह समष्टिगत रूप है । जयवर्द्धन का व्यक्तिगत रूप है : इला के प्रेम-व्यापार की वैध - श्रवैधता । इला, जो प्राचार्य की कन्या है, मातृत्व के प्रभाव में जिसका लालन-पालन स्वामी चिदानन्द के आश्रम में हुआ, उसका जयवर्द्धन से परिचय तब होता है, जबकि वह एक सामान्य कार्यकर्त्ता था और प्राचार्य से परामर्श करने के लिये आश्रम में आया करता था । जयवर्द्धन के राज्याधिपति पद पर ग्रासीन होने के बाद इला अविवाहित रूप में उसके साथ रहने लगती है— दोनों साथ रहते हुए एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक श्राकर्षित होते हैं । लोकापवाद उठता है । प्राचार्य की प्रदर्शनिष्ठा राज्य के लिये भारी पड़ती है, तो उन्हें नज़रबंद भी रखा जाता है । अन्त में पितृस्नेह इन दोनों के सामाजिकमिलन (विवाह) के प्रति उदार हो जाता है । ( इस प्रकार विवाह पर ग्राशीर्वाद का सम्पुट प्राचार्य लगाते हैं) यह मिलन तब संभव बनता है, जब जयवर्द्धन राज्यसत्ता से पृथक् हो जाने का निर्णय कर चुकते हैं । स्मरण रहे कि जयवर्द्धन इला से ही नहीं भागता, अपितु वह अपने से भी भागता है ! लिजा देश-सेविका के रूप में उपस्थित हुई है । उसमें राज्यसत्ता के प्रति आकर्षण है। मंत्री जय तक वह पहुँचती है । उसके मन में (जयवर्द्धन के) अपने प्रति मन में संघर्ष उमड़ उठता है । इला की बंधन - सीमा में वह आबद्ध जो है, पर लिजा का आकर्षण उस (मंत्री) को झकझोर जाता है । इला का रूप तो जैसे उसके मातृत्वपन ने हर लिया था । इला को लिज़ा से द्वेष कतई नहीं है । इला का लक्ष्य जयवर्द्धन है ( उसका मंत्रीत्व नहीं) और अन्ततोगत्वा जयवर्द्धन इला से भी किनारा कटा लेता है । इला के प्रति इन्द्रमोहन भी आकर्षित है— पर उसका चित्र धुंधला है । sar की प्रतीत स्मृतियाँ, लिज़ा के जीवन में हूस्टन के अविस्मरणीय प्रसंगों में सरसता की तरल सनसनाहट है— पर तर्क का तूफान, कमनीय भावुकता की बयार के पाँव कहीं ठीक से टिकने नहीं देता । 3 जयवर्द्धन के विरोधी दल के करणंधार हैं : आचार्य (गांधीवादी), स्वामी चिदानन्द ( प्रतिक्रियावादी), नाथ, लिज़ा ( अग्रगामी) और इन्द्रमोहन ( श्रातंकवादी ) । स्वामी चिदानन्द ( जो सनातन भारतीय संस्कृति के उपासक हैं) की दृष्टि में जयवर्द्धन का व्यवहार भारतीय और अमांस्कृतिक है | नाथ (जिनकी पत्नी एलिजावेथ यूरोपीय है ) अपनी सशक्त पत्नी के वशीभूत है । एलिजावेथ को सत्ता और वैभव
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy