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________________ २०६ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व को गौण मानते हैं। उनके दर्शन की व्यार या, उनकी लेखनी से स्वयं समय-समय पर व्यक्त हुई है। उनका दर्शन प्रश्नोत्तर में वा निबंध में जितना वौद्धिक आकार लेकर अवतरित हुअा है, वह उनके गल्प (कथा) साहित्य में स्पष्ट नहीं (अस्पष्ट) रहता है । इस अस्पष्टता के प्रति कुछ पालोचकों का याल है, जिससे जैनेन्द्र को अनायास टेक मिल जाती है कि यह उसकी भावुकता है, यह उसके दिल और दिमाग का द्वन्द्व है, जिसका 'ऐनेलेशेस' उसने कभी नहीं किया। इसी संदर्भ में जैनेन्द्र के प्रति प्रेमचंद का कहना है । 'अन्तः प्रेरणा और दार्शनिक संकोच का संघर्ष है।" (हंस वर्ष ३ संख्या ४) जैनेन्द्र वैयक्तिक मनोभावों और स्थितियों के चित्रकार हैं। संभवतः इसी प्रवाह में बह जाने के कारण वे सामाजिक जीवन से तटस्थ रहकर ( वा बनकर) चले हैं। उनका विश्वास समष्टि में नहीं, अपितु व्यष्टि में रहा है । 'त्याग-पत्र' (१९३५) जैनेन्द्र को हिन्दी जगत में पहला (प्रारंभिक) उपन्यास था—जिसका प्राकार 'लघु' था; और वह भूतपूर्व चीफजज स्वर्गीय सर एम० दयाल की निजी स्मतियों के संकलन का संक्षिप्त सार था । 'परख', 'तपोभूमि' (ऋषभचरण के साथ संयूक्त लेखन), 'सुनीता' उपन्यास पहले प्रकाश में आ चुके थे । 'त्याग-पत्र' के बाद 'कल्याणी', 'सुखदा,' 'विवर्त', 'व्यतीत' आदि उपन्यास एवं अनेक कहानियाँ प्रकाश में आई । १६५६ में जैनेन्द्र का चिन्तनीय कथित उपन्यास 'जयवर्द्धन' प्रकाशित हुआ। 'त्याग-पत्र' निःसंदेह अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण कृति रही । उर्दू, पंजाबी, आंग्ल और जर्मन आदि भाषाओं में भी जिसका प्रकाशन हुआ । यही वह जनेन्द्र की कृति हैं जिसकी छाप मन पर अंकित हुई और मन-ही-मन में वे मेरे प्यारे लेखक बन गये। 'त्याग-पत्र' से 'जयवर्द्धन' तक आते-आते उपन्यासकार में विचार और मनोविश्लेषण की ऊर्जा-शक्ति का जो भीषण विस्फोट हुआ-उससे 'कला' कुम्हलाई, अर्थात् उपन्यास की रस-~-(मानवीय भाव-संवेदन) धारा निर्मल न रहकर, निर्बल, उन्मन, शिथिल, अशक्त-सी बन गई । जयवर्द्धन के प्रारंभ में लेखक की 'फोटोस्टेट' प्रतिलिपि में आशंका प्रकट की गई है। 'जयवर्द्धन'-कह नहीं सकता कितना....... उपन्यास सिद्ध होगा।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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