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________________ जैनेन्द्र के उपन्यास १६१ (ङ) तब मृणाल कोयले वाले के यहाँ जाती है। विज्ञ पाठकों और बहुज्ञ आलोचकों का आरोप है कि यह स्वाभाविक नहीं हुआ । उसे कोठे वाले के यहाँ जाना चाहिये था, उसे कोठे पर जाना चाहिये था-(आधुनिक साहित्य-नन्ददुलारे वाजपेयी)। लेकिन एक तो यह कि कोठे वालों के यहाँ उसके लिये रास्ता बन्द हो गया था, दूसरे यह कि कोठे वाले की महानता (!) का भी उसे परिचय मिल ही चका था। कोठे वाले मृणाल के पति और कोयले वाले के चरित्र में पैसे की ऊँची दीवार के सिवा और कौन-सा अन्तर है ? प्रेम नाम की चीज न तो कोठे वाले के पास है और न कोयले वाले के दोनों ही के लिये मृणाल केवल भोग की वस्तु है । मृणाल के इस आचरण के द्वारा लेखक ने यही दिखलाया है। आर्थिक दृष्टि से चाहे समाज के विभिन्न स्तर बन गये हों, परन्तु मनुष्य की दृष्टि से यह विकास अभी अपने शैशव में ही है। प्रश्न उठता है, यह सब क्यों ? कब तक ? क्या यह सब नारी की आर्थिक परतंत्रता के कारण हैं ? इसके लिये जैनेन्द्र ने कल्याणी का सृजन किया है, जो आर्थिक दृष्टि से स्वयं स्वतंत्र ही नहीं, बल्कि अपनी कमाई पर अपने पति को भी निर्भर रखने वाली है। ('दादा कॉमरेड' की शैल आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र रह कर भी कितनी यातनाएं सहती है । उसके जीवन को मात्र उच्चवर्गीय अभिशाप कह कर नहीं टाला जा सकता । शैल उदारता चाहती है । सब कुछ संभव है; पर यही संभव नहीं है ।) लेकिन इससे कल्याणी को कम यातनाएँ नहीं सहनी पड़ती हैं । उसका पति उसे रुपये कमाने के लिये स्वतंत्रता देना चाहता है । नारी की स्थिति आज के समाज में बड़ी ही विषम है ! किसी भी हालत में पुरुष की अधिकार-भावना कम नहीं होती दीखती । जैवी (Biological) सुविधा और शक्ति तो उसे प्राप्त है ही, इसके सहारे उसने अपने लिये सुरक्षित परम्परा का भी निर्माण कर लिया है, जिसकी आज बात-बात पर दुहाई दी जाती है । जैनेन्द्र मानते हैं कि जब तक सहयोग के मानवीय धरातल पर हमारी चेतना का परिष्कार नहीं होता, जीवन की गाड़ी सहज और स्वाभाविक रीति से नहीं चल सकती। यह सब नारी के प्रति रूढ़ दृष्टिकोण में परिवर्तन से ही संभव है। दृष्टिकोण में परिवर्तन की यह समस्या नैतिक और मनोवैज्ञानिक नहीं तो क्या है ? ___ मानवी प्रेम की भूखी है, पैसे की नहीं। इसलिये मृणाल का यह कहना कि वह पैसे के लिये अपना शरीर नहीं वेचेगी, निरर्थक नहीं है । जहाँ भी थोड़ा प्रेम मिलता है, वह आकृष्ट होती है । चाहें तो आप इसे दुर्बलता भी कह सकते हैं । कुछ वर्षों से जैनेन्द्र भौन-से हैं । इधर उनका कोई नया उपन्यास नहीं प्रकाशित हुआ है। फिर भी वे हमारे इतने निकट हैं कि अभी अन्तिम रूप से उनके बारे में कुछ कहना मुश्किल है। जैनेन्द्र-प्रेमचन्द और अत्याधुनिक 'वादी' (मनोविज्ञानवादी, यथार्थवादी,
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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