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________________ .wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww उपन्यासकार जैनेन्द्र : पुनर्मूल्यांकन १७३ कसना चाहा है और कसावट में काली रेखा ही अधिक उभरी है। हिन्दू समाज की मूल भित्ति है परिवार,-जो अब दाम्पत्य में सिमट पाया है, परंतु इस दाम्पत्य में सचाई कितनी हैं ? क्या वह पत्नी की बलि पर नहीं खड़ा है ? क्या नारी का नारीत्व और मातृत्व भी वहाँ खण्डित नहीं है ? क्या वह भी मध्यवर्ग के पुरुष की अधिकार-लिप्सा की लीलाभूमि नहीं है ? जब समाज टूट कर दो (पति-पत्नी ) में रह गया है तो इस इकाई को भी गहरा क्यों न देखा जाये ? यह जिज्ञासा ही जैनेन्द्र से 'सुनीता', 'त्यागपत्र', 'कल्याणी', 'सुखदा' और 'विवर्त' लिखवाती है । यही नहीं, बीसियों कहानियों, निबंधों और वार्ताओं में समाज की इसी गाँठ को खोलने में जैनेन्द्र लगे हैं । दाम्पत्य क्या देह का है ? देह होने पर उसकी सुरक्षा कहाँ है ? क्या वह व्यक्तिगत है या सामाजिक ? वह लोम पर टिका है या त्याग पर ? उत्तर में 'सुनीता' है, जिसमें हम दाम्पत्य की निष्ठा से परिचित होते हैं और शिक्षित नारी में सनातन सतीत्व पा उसके प्रति प्रास्थावान बनते हैं । साथ ही हम उससे बचना भी चाहते हैं, क्योंकि हमारी नैतिकता देह को उघाड़ना नहीं चाहती। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या श्रीकांत-सुनीता के दाम्पत्य में समाज के प्रति असहिष्णुता भी नहीं है ? हरिप्रसन्न के पलायन से यदि श्रीकांत और सुनीता बचे तो इससे दाम्पत्य की महिमा क्या सचमुच बढ़ी ? 'सुखदा' और 'विवर्त' में पत्नी और पति टूट कर भी उदार बनते हैं, सामाजिक होते हैं और अपने को बचाते नहीं। समाज के लिए व्यक्ति के त्याग का आदर्श ही इन उपन्यासों का प्राण है। सहने में ही सच्चा शौर्य है, भागने में नहीं। व्यथा नारी में है कि वह पति से हटती जा रही है और पुरुष में भी है कि वह अपने प्रेमास्पद के प्रति उतना उदार नहीं है; जितना होना चाहिये । सतीत्व को तलवार की धार की तरह पैना बनाकर जैनेन्द्र उससे देह को एकदम काट देना चाहते हैं, परन्तु देह के साथ आत्मा भी उघड़ ही जाता है। नीति-अनीति के प्रश्न पर टिक कर जैनेन्द्र मध्यवर्ग को समाज के आगे कटघरे में प्रस्तुत नहीं करते, उसे नई-संस्कृति के द्वारा उत्पन्न सूक्ष्म चेतना के आगे अपराधी बना कर खड़ा करते हैं । 'त्यागपत्र' और कल्याणी' में वह पति-परित्यक्ता नारी के सतीत्व के दावे को देह पर खण्डित करा कर भी उसकी आत्मिक दीप्ति को प्रचण्ड बनाये रखते हैं और समाज को पग-पग पर चुनौती देते हैं कि वह अपनी पाप-पुण्य की मान्यताओं को बदले । चुनौती पतित्व को भी है कि वह धर्म-पत्नीत्व को नए सिरे से जाने, परंतु त्यागपत्र' में पति परदे के पीछे है, अभियुक्त के रूप में समाज सामने है । पति से टूट कर नारी स्थितिहीन हो जाती है, यह सत्य मृणाल ने भोग कर जाना है । प्रेमचंद सुमन से इस सत्य को बचा गये हैं, क्योंकि उन्हें आदर्शवाद का सहारा है, परन्तु जैनेन्द्र देह को असार्थक
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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