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________________ अभी १३ नवम्बर को आदरणीय दद्दा ( श्रद्धेय श्री बाबू मैथिलीशरण जी गुप्त ) ने मुझे अपने एक पत्र में जैनेन्द्र जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में दोतीन पंक्तियों में अपने विचार लिख कर भेजे थे। उनकी माप-जोख की तराज को मैं पाठकों के हाथ में ही सोपे देता हूँ : - "जैनेन्द्र जी मेरे स्वजन जैसे हैं । वे लेखिनी के धनी हैं और हिन्दी-साहित्य की उनसे श्रीवृद्धि हुई है । हिन्दी के कथा-साहित्य को उन्होंने नया मोड़ दिया है। उनकी पैठ गहरी है, जो उन्हें चिन्तक की कोटि में पहुँचाती है। मेरी कामना है वे दीर्घायु हों।" प्रस्तुत संकलन जैनेन्द्र जी की साहित्यिक दिशाओं और उनकी कृतियों को लेकर मत-भेद हो सकता है, पर मेरा प्रबल विश्वास है कि मत-भेद में ही तो जीवन की गति सन्निहित है । कुछ भी हो इतने सबल और सार्थक साहित्य के स्रष्टा के प्रति हम मौन नहीं बैठ सकते । इसी ध्येय से मैंने इन लेखों को संकलित किया है। सभी विद्वानों, समीक्षकों और विचारकों का, चाहे उनके लेख मुझे इस समय नहीं मिल पाये हैं, मझे आशीर्वाद और स्नेह मिला है । मैं उनका हृदय से आभारी हूँ। "जैनेन्द्र व्यक्तित्व और कृतित्व" जैसी भी बन पड़ी है, आपके समक्ष है। अपने अत्यधिक व्यस्त जीवन में से ये क्षण निकालकर इसको प्रस्तुत करना मेरी अपनी धुन की सफलता है-मैं इसे श्लाघा नहीं, कटु सत्य मानता हूँ । इसके विभिन्न लेखों के लेखकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से जैनेन्द्र-साहित्य का अध्ययन किया है । प्रस्तु, पठनीय और मननीय होते हुए भी उनका दायित्व मूलतः उन्हीं का है। फिर भी मैं उनके आभार से उऋण नहीं हो सकता। एक बात और-इस पुस्तक की भूलें परी ही हैं और इसकी सफलताएँ आपकी उपलब्धियाँ । यदि किन्हीं भाई के लेख में छपाई की कोई भूलें रह गई हों तो उनके लिए मैं क्षमा-याचक हूँ। बड़ला लाइन्स, दल्ली। '. २. १९६३ -मिलिंद
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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