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हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी ।
२८-१२-१९६२. जैनेन्द्र जी मुख्यतः गाँधी-युग के लेखक हैं । यो प्रेमचंद भी उस युग के लेखक हैं, पर उनकी अपेक्षा में, जनेन्द्र की विशेषता यह है कि जहाँ प्रेमचन्द आदर्शो को बहुत कुछ ऊपरी या बाहरी स्रोतों से लेते प्रतीत होते हैं वहाँ 'सुनीता', 'त्यागपत्र' आदि का लेखक आदर्शो का अन्तरंग अन्वेषक है-वह उन्हें प्रान्तरिक इच्छाशीलता की प्रक्रिया से प्राप्त करना चाहता है। इस दृष्टि से जैनेन्द्र का प्रादर्शवाद अाधुनिक है-आधुनिक बौद्धिक चेतना को स्पर्श करने वाला। कलाकार के रूप में श्री जैनेन्द्र ने हिन्दी कथा-साहित्य को, निश्चय ही, नया मनोवैज्ञानिक प्रायाम दिया । उनकी नितान्त सीधी और सूक्ष्म भाषा, सचेत प्रयोग पर आधारित न होते हुए भी आश्चर्यजनक रूप में प्राधुनिक है। हिन्दी के मनोवैज्ञानिक कथाकारों में उनका व्यक्तित्व निजी व निराला है, और उनका स्थान असंदिग्ध । उनकी कला और शिल्प उनकी संवेदना की प्रकृत्रिम, सहज अभिव्यक्ति हैं।
जैनेन्द्र जी ने कहानियाँ तथा नाटक भी लिखे हैं, सब अपनी विशेषता लिए हुए । उनके 'टकराहट' एकांकी की कक्षा का, सांस्कृतिक-आत्मिक संघर्ष का सशक्त चित्रण करने वाला हिन्दी-नाटक मैंने दूसरा नहीं देखा ।
-देवराज