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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
रखने की क्षमता भी रखता हूँ क्या ? मैं कई बार यहां तक सोच बैठता हूँ कि घनिष्ठतम सामीप्य कहीं मनुष्य की रचनात्मक विवेचना शक्ति को समाप्त तो नहीं कर देता। एक बार यदि कोई उनके पास पहुँच जाता है तो उसे उठने की फुर्सत नहीं मिलती। उनका समूचा स्नेह सच्चा और हृदय का स्नेह 'उस आगन्तुक पर पूरी तरह से बिखर जाता है । उनकी ईमानदार अनुभूति प्रापको पूरी तरह से परख डालती है और कभी-कभी आदर्श और यथार्थ की उलझन में उलझ कर स्वयं जनेन्द्रजी से ही आप पूछ बैठते हैं, आपकी बात यथार्थ है तो अमुक व्यक्ति ने ऐसा क्यों कहा है ? जैनेन्द्रजी हँसते हुए केवल अपने पक्ष को समझाते हैं। दूसरे विसी भी विद्वान् पर छींटा कसना या कीचड़ उछालना उन्हें पसन्द नहीं है।
जैनेन्द्र अपने परिवार में हरेक को अपना स्नेह देते हैं । उनकी एक कमजोरी है। वे जीवन में परिवार के महत्व को कम नहीं होने देते। हां, 'अर्थ' से उनका उतना अधिक लगाव नहीं है, जितना और बहुत से लोगों को होता है । 'हिमाद्रि' की योजना या 'गंगाराम अस्पताल' के जीवन को देखकर स्वीकार करना ही होता है कि स्वतंत्र विचारक होते हुए भी जैनेन्द्र पारिवारिक एकरूपता को बनाए रखने में बहुत दक्ष हैं ।
कई बार मैं, पता नहीं, क्यों भाई साहब से कह बैटता हूँ..."भाई साहिब आप प्रेक्टिकल बिल्कुल भी नहीं हैं।" और जैनेन्द्र हैं कि हँस कर टाल देते हैं । कभी. कभी वे अपनी दिशा और लक्ष्य का स्पष्टीकरण भी करते हैं, पर बार-बार जब मैं एकान्त के क्षणों में विचार करता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि उनके निष्कर्षों का उनके जीवन से अपना ही सम्बन्ध है।
रीति-रिवाज और दस्तुरः 'जनेन्द्रजी को रीति-रिवाजों और दस्तुरों का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं हैमैं तो यह भी कहने की धृष्टता कर डालता हूँ। उन्हें केवल वही दस्तूर पसन्द हैं जो उनके मन को रुचें । जोश उनको छुकर भी नहीं गया है । रोष उनमें होगा, पर वह क्षणिक है । एक दिन की बात है मेरी किसी बात से क्षुब्ध होकर भाई साहब ने मुझसे फोन पर कह दिया'. . "बस हमारा तुम्हारा सम्बन्ध समाप्त ।" और जब उन्हें स्थिति स्पष्ट हो गई तो तुरन्त ही बुला भेजा। वेहद प्राश्चर्य हुआ । अभी तो भाई साहिब नाराज हो रहे थे और अभी बुला भेजा और जब मैं पन्द्रह-बीस मिनट में ही जा पहुँचा तो मैं स्तब्ध रह गया । उन्होंने ऐसा स्नेह प्रदर्शित किया मानो कुछ हुआ ही न हो। इसलिये मेरी ऐसी धारणा बन गई है कि बहुत से भाई उनकी मंगल-प्रेरणा को अमंगलकारी मान बैठते हैं और उनके अपने ही विचारों को अटपटा बताते हैं । वातावरण में उनकी उपलब्धियों का जब मैं शान्ति से मूल्यांकन करना चाहता हूँ तो मुझे जनेन्द्र जी के अन्तर्मानस से निकलने वाले चलते-फिरते वाक्यों और प्रवचनों को संजोकर रखने की इच्छा होती है।