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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्य
आस्तिकता ( २ ) ग्रहं ( ३ ) स्वपरता की चुनौती अथवा परस्परता ( ४ ) ग्रहिंसा | जैनेन्द्रजी जीवन-जगत् के शाश्वत प्रश्नों का क्या समाधान प्रस्तुत करते हैं और हमारी वैज्ञानिक सभ्यता के सामने उपस्थित अध्यात्म-भौतिकवाद के सन्तुलन की समस्या को उन्होंने कितनी गहराई से अनुभव किया है, इसकी कुछ झांकी श्रागे उपर्युक्त चार मूल तत्त्वों का विवेचन करते हुए दे पाने का प्रयास मैं करूँगा ।
ब्रह्म की खोज में पहला चरण
'जिसके बारे में हम कुछ बता नहीं सकते, उसके बारे में हमें चुप रहना चाहिये ।' विन्स्तीन की यह उक्ति यद्यपि ईश्वर के अस्तित्व और स्वरूप पर पूरी तरह सही उतरती है, तब भी मानव की बुद्धि और उसकी वारणी ईश्वर के विषय में कभी भी निष्क्रिय नहीं रही । ईश्वर मानव प्रज्ञा के सामने उपस्थित सबसे विकट रहस्य है | मानव ने अपने अस्तित्व के सुदूर श्रादिकाल से आज तक इस रहस्य के उद्घाटन का अनवरत प्रयास किया है । इस प्रयास के प्रगति क्रम का कुछ अध्ययन किया जा सकता है । इस विचित्र विराट् सृष्टि में पुरातन मानव की अपरिपक्व बुद्धि ने जिन विभिन्न दुर्द्धर्ष शक्तियों को सक्रिय पाया, उनको उसने अपनी कल्पना के द्वारा मानवी, मानवेतर अथवा मिश्रित काया वस्त्र पहनाकर अपने देवी-देवता बना लिया और उनकी पूजा के लिए बृहद् मन्दिरों, रहस्यमय विधि-विधानों एवं भयानक परमोरंजक प्रथाओंों की सृष्टि की। मिस्री, यूनानी और रोमन देवी-देवताओं के चित्र देखकर और उनके कार्य-कलापों के विवरण पढ़कर पता चलता है कि आदिम मानव ने ईश्वर को विभक्त भौतिक शक्तियों के रूप में देखा और समझा। उसके अनुसार संसार और मानव का भाग्य इन क्रूर, निरंकुश शक्तियों की मुट्ठी में है और ये उसके साथ मनमानी करने में अमानुषीय रस लेते हैं । पर सभी देवता ऐसे नहीं हैं । कुछ सरल, उदार और सदय भी हैं, जो प्रासुरी शक्तियों के विरुद्ध मानव की सहायता करते हैं और उसे सौभाग्य प्रदान करते हैं। मानव की कल्पना ने इन सुरासुरों के बीच मजेदार नोक-झोंक और भीषण युद्ध कराये हैं । होमर के इलियड प्रोडीसी में इन सबका रोमांचक पर अनुरंजक चित्र प्रस्तुत है । एक विशेष बात यह कि अपनी विभिन्न वृत्तियों, कामनाओं, वासनाओं का आरोप भी मानव ने इन देवी-देवताओं में किया और अपना जातीय इतिहास भी इनकी कथानों में गूँथ दिया । इस प्रकार विराट् भौतिक शक्तियों को उसने अपनी सुविधा के लिये आकार-बद्ध बना लिया और अधिकांश भय से प्रेरित होकर वह उनकी पूजा करने लगा । मानव की ईश्वरसम्बन्धी इस अन्तिम कल्पना का विशुद्ध नमूना यूनानी देवी-देवताओं में देखा जा सकता है । भारतीय ( श्रार्य) देवी-देवता भी 'ग्रीक गॉड्स' के समान ही कल्पित हुए होंगे, पर भारतीय देवी-देवताओं का रूप भारतीय दर्शन और संस्कृति के विकास के