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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
निष्कर्ष जैनेन्द्र जी की निबन्ध-शैली का समन्वित मूल्यांकन करने पर इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि उन्होंने भाव-तत्त्व अथवा विचार-तत्त्व की तुलना में शिल्प-पक्ष को कम गौरव नहीं दिया। उनके निबन्धों का अनुशीलन केवल विचार-प्रौढि की दृष्टि से नहीं किया जाना चाहिये, अपितु इस तथ्य को भी दृष्टि में रखना चाहिये कि उन्होंने भाषा-शैली के प्रायः सभी उपादानों का समादर किया है । उनके शैली-विषयक प्रादर्श पर शंका करने के लिये केवल एक प्राधार होगा-और वह है आलोचक का यह रूढ़िवादी दृष्टिकोण कि हम विचारात्मक निबन्धों में जिस कोटि के वाक्य-विन्यास के अभ्यस्त हैं, उसे उन्होंने नहीं अपनाया। दूसरे पक्ष में, इसे उनकी मौलिक प्रवत्ति की देन कहा जायेगा । उनके निबन्धों का अनुशीलन करते समय हमें शैली के परम्परा-प्रथित राजपथ से दृष्टि हटाकर जन-मानस में पल्लवित होने वाले व्यावहारिक मूल्यों को ग्रहण करना होगा । उनकी शैली पर शास्त्रीय व्यवस्थाओं का कठोर नियन्त्रण नहीं है, वनभूमि की सरिता-सा मनोनुकूल प्रवाह ही उसका नैसर्गिक आभरण है।