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________________ जैनेन्द्र जी की निबन्ध-शैली १३ १४ सूचित शैली, चित्र शैली, व्यंग्य शैली और अलंकार शैली को भी स्थान दिया है । विचारात्मक निबन्धों की रचना के फलस्वरूप उन्होंने सूक्ति शैली का अनेकशः प्रयोग किया है । यथा -- (अ) "शरीर द्वारा प्रात्मा की प्रतिष्ठा धर्म है "" ( श्रा ) " क्षोभ मनुष्य को खाता है, जो उसको खाते हैं वे अमृतजीवी होते है", (इ) "विश्वास का रास्ता आस्तिक का रास्ता है " 3, (ई) " अपराधी को मारना अपराध को जिलाना है ।' प्रस्तुत उक्तियों में जिस कोटि की गम्भीरता और आदर्शवादिता निहित है, उसी के समानान्तर भावुकता भी जैनेन्द्र जी के निबन्धों में उपलब्ध है । ऐसी उक्तियों में चित्र शैली के समन्वय से विशिष्ट मार्मिकता आ गई है । उदाहररणार्थ 'मूल्यांकन' शीर्षक निबन्ध की ये पंक्तियाँ देखिए--" उस उद्यान में विशाल एक बड़ का पेड़ है, जिसमें ऊँचाई विशेष नहीं है, पर विस्तार खूब है । वह ऐसा घना है ऐसा छायादार, कि शतसहस्र जन उसके तले विश्राम पा सकते हैं । पुराना खूब, जटाएँ बहुत और तना उसका इतना बृहदाकार है कि क्या पूछिए । "५ चित्र शैली की सन्निधि में लेखक ने अलंकार-शैली को भी यत्किंचित् स्थान दिया है । उदाहरणार्थ निम्नलिखित वाक्यों में वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार और मानवीकरण अलंकार का क्रमशः प्रयोग देखिए - ( अ ) " लाखों तारों से आसमान भरा है । जैसे—मोतियों से अंजलि भरी है "६, (ग्रा) " धूप चमकी तो वृक्ष ने मनुष्य से कहा, 'मेरी छाया में ' 'ग्रा जाओ ।"" जैनेन्द्र जी ने निबन्धों में रोचकता के प्रधान के लिये व्यंग्य शैली का भी शतशः प्राश्रय लिया है । उनकी व्यंग्योक्तियों में केवल तीखापन ही नहीं है, अपितु उनमें चिन्तन के लिये प्रभूत सामग्री भी है । यथा - ( अ ) "वह अक्ल ही क्या जो दूसरे को बेअवल न समझे ?" (प्रा) "टाइप और व्यक्ति । हमारे विद्वान् भाई हजारीप्रसाद जी इन दो बाटों से भारी-भारी बोझ तोलते हैं ।" हज़ारी बाबू के अलावा भी इन बाटों का चलन मिलता है । आधुनिक तुला में वे खासे काम आते हैं ।' "ह इन पंक्तियों की पृष्ठभूमि में गम्भीर विचार - प्रेरणा है, जिसे व्यग्य-सजीव पदावली की प्रोट में उपेक्षित नहीं किया जा सकता । १२. मन्थन, पृ० १८४, २८५ | ३-४. सोच-विचार, पृ० ११२, २६६ | ५. मन्थन, पृ० ११६ | ६-७. साहित्य का श्र ेय और प्र ेय, पृ० १७५, २५ | ८. सोच-विचार, पृ० ५४ | ६. साहित्य का श्रेय और प्रय, पृ० १६३ ।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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