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________________ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व हैं—'बद्धमान' जैसे अशुद्ध प्रयोग नितान्त विरल हैं, वस्तुतः उन्होंने विद्वान, भगवान' आदि हलन्तवर्णीय प्रयोग ही किये हैं । उर्दू-शब्दों में नुक्ते लगाने के प्रति भी वे पर्याप्त सजग रहे हैं, किन्तु सबसे अधिक असावधानी भी इसी क्षेत्र में हुई है। 'मुगल', 'तहजीबयापता' आदि शब्द इसके प्रमाण हैं। जैनेन्द्र जी की रचना-शैली शैली अथवा रचना-रीति की दृष्टि से जैनेन्द्र जी के निबन्धों में पर्याप्त विविधता दृष्टिगत होती है । उन्होंने व्यास शैली, कथा शैली, उदाहरण शैली, प्रश्नोत्तर शैली और सूक्ति शैली का अधिक प्रयोग किया है, किन्तु उनकी रचनाओं में समास शैली, चित्र शैली, व्यंग्य शैली आदि के उदाहरण भी विरल नहीं हैं। उन्होंने निबंधों की वृहत् परिमाण में रचना की है, अतः शैली-सम्बन्धी विविध प्रयोग उनकी रचनाओं में वैसे भी अधिक अपेक्षित हैं । आगे हम उनके द्वारा प्रयुक्त अभिव्यंजना-रीतियों पर क्रमशः विचार करेंगे। (अ) व्यास-शैली जैनेन्द्र जी के निबन्धों में व्यास शैली को प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ है । भावदुरूहता से प्रसूत शैली-विषयक जटिलता को वे अभिव्यक्ति की दुर्बलता मानते हैं । यथा-'बहुत ज्यादा जानकारियों और खबरों से लद कर, या प्रात्यन्तिक निश्चिति पहन कर, भाषा लहरीली कैसे रहेगी ? * भाषा को तरंगायमान रखने के लिए वे सरल तथा व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग करने के अतिरिक्त संक्षिप्त वाक्य-रचना पर भी बल देते है । हिन्दी के निबन्धकारों में यह उनकी निजी विशेषता है अर्थात् सरल वाक्यों के प्रति उनके मन में सहज-विशिष्ट प्राग्रह रहा है । उदाहरणार्थ निम्नलिखित अवतरण देखिये (क) "अनेक समितियों के वह सदस्य हैं । धन हैं, पर व्यसन कोई नहीं है । पढ़ नही तो गुने बहुत हैं । पैठ उनकी गहरी है, बुद्धि चौकन्नी। कान और आँख खोल कर रहते हैं। ऊपर धन का दिखावा नहीं दीखता है । (ख) “महान् और अश्लील साहित्य के मूल में सचमुच थोड़ा ही भेद है। थोड़ा है, पर गहरा है । वह भेद वृत्ति का है । महान् साहित्य में से ढेर के ढर ऐसे उदाहरण निकाले जा सकते हैं, जिनमें अश्लीलता देखी और दिखलाई जा सके।६ १. देखिए 'साहित्य का श्रेय और प्रय,' पृष्ठ २७३ २. देखिये 'साहित्य का श्रेय और प्रेय,' पृ० २७२ ३. देखिये 'साहित्य का श्रेय और प्रेय', पृष्ठ ३६०, ३७० ४. साहित्य का श्रेय और प्रय, पृ० १४६ ५. मन्थन, पृ० १४६ ६. साहित्य का श्रेय और प्रेय, ३७१
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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