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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
बात में कह रहा था"" जैसे वाक्य भी हिन्दी की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं हैं ।
जैनेन्द्र जी ने ग्रपने निबन्धों में अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग किया है । इस विषय में उन्होंने दो विधियों को अपनाया है— (प्र) देवनागरी लिपि में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग — इन्वेस्टमेण्ट, ब्लैक आउट, क्लासरूम, कान्फ्रेन्स, आर्टिस्ट आदि, २ (प्रा) रोमन लिपि में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग — Salt, Complexes, Inherenit, Self-expression, Couscious, tendency आदि 13 लेखक ने इन शब्दों के लिये हिन्दी - पर्याय नहीं दिये हैं, जिसका अनुमोदन नहीं किया जा सकता, क्योंकि कुछ शब्द साधारण हिन्दी - पाठकों के लिये जटिल हो सकते है । यहाँ यह उल्लेख्य है कि लेखक ने कहीं-कहीं अंग्रेजी माध्यम से चिन्तन किया है, फलतः उन्होंने अपने अभिप्राय को स्पष्ट करने के लिये कोष्ठकों में अंग्रेज़ी पर्याय भी दिये हैं। यथाग्रान्तरिक (Subjective), घटना की दुनिया (Objective facts ), पास-पड़ोसपन (Neighbourliness ), सत्याग्रह ( Direct action ) *
( श्रा) शब्दगत सहभाव
भाषा में प्रवाह लाने के लिये काव्य तथा गद्य में शब्दगत सहभाव अथवा सहयोगी शब्दों के प्रयोग की प्रवृत्ति को साधन-विशेष के रूप में अपनाया जाता है । जैनेन्द्र जी इस प्रकार के शब्दों के सफल प्रयोक्ता हैं और साथ ही ग्रनन्य समर्थक भी। इस विषय में उनकी यह उक्ति दृष्टव्य है- " भाषा में विशेषणों का द्वित्व और युग्म तो अनिवार्य ही है । सत् ग्रसत्, हेय - विधेय, पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा आदि तुलना के शब्द उसकी भाषा में भी आयेंगे ही।"" इस प्रकार के शब्द-युग्मों को भिन्नार्थ सहयोगी शब्द भी कहा जा सकता है । जैनेन्द्र जी ने उपर्युक्त विशेष सार्थक शब्दयुग्मों के अतिरिक्त 'लोई कम्बल', 'लाग-लपेट', 'ग्राड़े- वांके' आदि शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग किया है । उन्होंने 'चप्पा-चप्पा', 'अणु-अणु', 'भांति-भांति' जैसे समानार्थी सहयोगी शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिन्हें काव्य-शास्त्र की शब्दावली
१. सोच-विचार, पृष्ठ ५६ |
२. देखिए (अ) सोच विचार, पृष्ठ १३१, १४९, (या) साहित्य का श्रेय और प्रेय, पृष्ठ १३. १८७, ३८६ |
३. देखिए 'साहित्य का श्रेय और प्र ेय', पृ० ३८४-३८७ |
४. देखिए 'मन्धन' पृ० १०६ ११० ।
५. मन्थन, पृ० १४४ |
६. देखिए (अ) सोच-विचार, पृ० २३५, (श्रा) साहित्य का श्रेय और प्रेय, पृ० ३७१ | ७, देखिए 'सोच-विचार', पृ० २३४ |