SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डाक्टर सुरेशचन्द्र गुप्त जैनेन्द्र जी की निबन्ध-शैली वर्तमान युग में हिन्दी-निबन्ध को विकासमान करने वाले साहित्यकारों में जैनेन्द्र जी का अन्यतम स्थान है। उन्होंने समाज, धर्म, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, साहित्य आदि की विविध समस्या को लेकर शताधिक उत्कृष्ट निबन्धों की रचना की है। इस दृष्टि से उनके 'मन्थन', 'सोच-विचार', 'साहित्य का श्रेय और प्रेय' आदि निबन्ध-संग्रह विशेषतः उल्लेख्य हैं । उनका अप्रकाशित निबन्ध-साहित्य भी पर्याप्त समृद्ध है । विवेचन की सुविधा के लिये प्रस्तुत लेख में उपर्युक्त कृतियों के आधार पर ही उनकी निबन्ध-शैली की विवेचना की गई है। उक्त शैली से हमारा अभिप्राय भाषा और शैली-सम्बन्धी समीक्षा से है, निबन्धगत वस्तु-तत्त्व की विविधता से नहीं। निबन्ध का स्वरूप "निबन्ध' शब्द की रचना 'बन्ध' धातु में 'नि' उपसर्ग के प्रयोग से हई है। 'नि' का प्रयोग संज्ञा, क्रिया आदि के पूर्व विशेषता के द्योतन के लिये किया जाता है और 'बन्ध' का अर्थ बाँधना, व्यवस्था अथवा सामंजस्य है। अतएव निबन्ध' शब्द का अर्थ हया-विशेष रूप से बाँधना अथवा सामंजस्य-पूर्ण व्यवस्था करना। इसके लिये यह अपेक्षित है कि उसमें मौलिक विचार-सामग्री के अतिरिक्त अभिव्यंजना का लालित्य भी हो। वस्तुतः निबन्ध ही ऐसी गद्य-विधा है, जिसमें विषय और शैली की अधिकतम एकात्मता संभव है।' भावना और विचार की प्रमुखता होने पर भी निबन्ध में शैली-तत्त्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती। इस सम्बन्ध में शुक्ल जी की निम्नस्थ उक्ति दृष्टव्य है-“यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है । भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबन्धों में ही सबसे अधिक सम्भव है।" जैनेन्द्र जी की शैली विषयक मान्यताएँ जैनेन्द्र जी ने साहित्येतर विषयों पर निबन्ध-रचना को प्राथमिकता दी है, तथापि 'साहित्य और समाज', 'कला क्या है', 'साहित्य-सृजन', 'साहित्य और नीति' १. निबन्ध के स्वरूप के विशेष अध्ययन के लिए लेखक की कृति 'प्रतिनिधि निबन्ध' की भूमिका (पृष्ठ ६-२३) दृष्टव्य है | ( १०५ )
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy