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________________ १०४ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व खड़े होने की भावना के और कुछ नहीं है । मृणाल जैसी पारिवारिक परिस्थितियों आज भी कई महिलाओं की हो सकती हैं । यदि समय-कुसमय, विपत्ति काल में वह अपनी सहायता स्वयं करने में सक्षम है और सम्मानपूर्वक अपनी आजीविका कमाने योग्य हैं तो किसी पाड़े समय वह मृणाल की भाँति किसी 'कोयले वाले' के साथ रहने पर कदापि मजबूर नहीं होंगी। मैं सोचती हूँ एक 'कैरिरिस्ट' अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति अधिक सजग होती है और इसीलिये उसमें सतीत्व के प्रति मोह ज्यादा ही होना चाहिये, कम नहीं। कार्यशील स्त्रियों का कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है और इस कार्य-क्षेत्र में किशोरियाँ हैं, युवतियाँ हैं, प्रौढ़ महिलाएं हैं जो पत्नियाँ हैं और माताएं भी । समय पाकर ये किशोरियाँ और युवतियाँ भी ग्रहस्थाश्रम में प्रवेश करेंगी और आज हर कार्यशील लड़की की यह धारणा ही नहीं, बल्कि विश्वास भी है कि वह अपने कार्य-क्षेत्र में तो सफल हो ही सकती है, पर इसके अतिरिक्त वह एक सफल पत्नी, गृहिणी और माता बनने के भी पूर्णतः सक्षम है । और हमें पूर्णतः विश्वास है कि जैनेन्द्र जी अपने संवेदनशील दृष्टिकोण से आधुनिकायों के नये प्रयास को, जिसके द्वारा वह घर और कार्यक्षेत्र, दोनों का दायित्व सम्भालने में अपने को सक्षम समझती हैं, अपना समर्थन देंगे।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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