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________________ १०२ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व का अगाध सागर है । उसके इन गुणों को कहीं भी प्रासानी से नष्ट नहीं किया जा सकता । लगता है नारी को एक "करियरिस्ट'' के रूप में देखने को जैनेन्द्र जी इतने उत्साहशील नहीं । शायद उन्हें भय है कि यह रूप उनकी भारतीय नारी की प्रतिमा के अनुकूल नहीं । पारिवारिक शान्ति और सुरक्षा के लिये “करियर" एक बाधा के रूप में उपस्थित हो सकता है । "कल्याणी" में अपने उद्गारों को वह मुक्त अभिव्यक्ति दे पाये हैं। "इस सभ्यता में स्त्रियां अपने को चाहती हैं, मर्द अपने को चाहते है और दोनों अपने लिये दूसरे को इस्तेमाल करना चाहते हैं । इससे मनुष्य को तरक्की मिलेगी? खाक मिलेगी, इससे ध्वंस पास पायेगा, यह तो छीना-झपटी और नोचखसोट है, इसमें उन्नति कहाँ रखी है, मौत हां, यह जरूर बैठी है।" भारतीय नारी को चाहे कितनी भी उच्च शिक्षा क्यों न प्राप्त हो और चाहे विदेश भी क्यों न घूम आई हो, लेकिन अपने जातिगति मूल गुणों की अवहेलना करने की शवित उस में नहीं होनी चाहिए । लगता है जैनेन्द्र जी को अपनी यह मान्यता काफी प्रिय है ।) ____ कल्याणी विदेशी डिग्री प्राप्त डाक्टर है तो क्या, पर उसमें भी भारतीयता के प्रति मोह है । पर जाने क्यों, उसके शब्दों में जब हम उसकी इन भावनाओं की अभिव्यक्ति पाते हैं तो कुछ बड़ा अजीब-सा लगता है, जैसे कुछ अप्रत्याशित बात हो । "पत्नीत्व को दासता कहते हो ? हाँ है वह दासता, लेकिन साधना भी वही है ....वही उसका धर्म है। उसका अलग स्वतंत्र कुछ न रहे, सब पति में खो जाए। पति व्यक्ति नहीं है, वह प्रतीक है, इससे सती को यह सोचने का अधिकार नहीं है कि पति सदोष है । हो सकता है वह अपंग हो, विकलांग हो, जैसा हो पति पति ही है। पति देवता है। हिन्दू शास्त्र सच कहते हैं, स्त्रियाँ यह कह कर कि वे शास्त्र पुरुषों के बनाये हुए हैं अपने को स्वधर्म पालन से नहीं बवा सकतीं। क्या वे स्त्रीत्व की विडंबना चाहती हैं।' मृणाल के प्रति मन जिस करुणा से भर उठता है, वैसी करुणा कल्याणी के प्रति नहीं उपजती । ऐसे लगता है जैसे इतने ज्ञानार्जन के बाद भी वह मिट्टी की मूर्ति हो। गृणाल का व्यक्तित्व जिस अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करके निखर उठता है, कल्याणी द्वारा उसी को मूक भाव से सहते जाना, एक तरह का अपवाद-सा लगता है। "व्यतीत' में चन्द्री का उग्र रूप जहाँ मन को छूता है, वहाँ अनिता का त्याग कोई इतनी बड़ी दिलासा नहीं देता, लेकिन इनमें कहीं कोई जटिलता नहीं।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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