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जनेन्द्र जी के कथा साहित्य में नारी भावना
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ही है, पर इसके अतिरिक्त हमें नारी के उस शुद्ध रूप के भी दर्शन कराता है, जहाँ कहीं तो हम श्रद्धा से नत हो जाते हैं और कहीं करुणा और दया से अभिभूत हो जाते हैं । ऐसे लगता है जैसे नारी मात्र की पीड़ा और यातना जैनेन्द्र जी को बड़े
गहरे कहीं छू गई हो ।] “त्याग-पत्र” में मृणाल के भूतियों को पढ़ कर मन सहानुभूति स्वयं किसी पीड़ा में डूबा हुआ है ।
प्रति उनकी कारुणिक और संवेदनशील अनुमे भर उठता है । मृणाल का एक-एक शब्द मानों
"लेकिन सहायता का हाथ देकर क्या मुझे यहाँ से उठाकर ऊँचे वर्ग में जा बिठाने की इच्छा है । तो भाई, मुझे माफ कर दो, वैसी मेरी अभिलाषा नहीं है । सहायता मुझे इसलिये चाहिये कि मेरा मन पक्का होता रहे कि कोई मुझे कुचले तो भी मैं कुचली न जाऊ और इतनी जीवित रहूँ कि उसके पाप के बोझ को भी ले लू और सबके लिए क्षमा की प्रार्थना करूँ । प्रतिष्ठा मुझे क्यों चाहिए मुझे तो जो मिलता है. उसी के भीतर सान्त्वना पाने की शक्ति चाहिये ।"
[ जैनेन्द्र जी ने जहाँ कहीं भी अपनी नायिकाओं का चित्रण पतिता की भूमिका में किया है वहाँ सब कुछ सह लेने के बाद भी उनकी नायिका दूध की धुली हुई नारी की भाँति निखर कर सामने ग्रा जाती है ] ज़रा बताइये तो मृणाल जब स्वयं ही अपने को दोषी बता रही है तो आप और क्या कह कर उसका अपमान करना चाहेंगे, पर क्या उसके एक-एक शब्द में श्रापको अन्याय की धार पर बलि दे दी गई नारी के दर्शन नहीं होते ? क्या आपका मन संवेदना से नहीं भर उठता । लेकिन उसे पतिता जानते हुए और मानते हुये भी तो हम उससे घृणा नहीं कर पाते और कर भी कैसे सकते है ? मृणाल को सुनिये ।]
" फिर जिनको साथ लेकर पति को छोड़ प्रायी हूँ, उनको मैं छोड़ दूँ ? उन्होंने मेरे लिए क्या नही त्यागा ? उनकी करुणा पर मैं बची हूँ। मैं मर भी सकती थी, लेकिन मैं नहीं मरी, मरने को अधर्म जानकर ही मैं मरने से बच गई । किसके सहारे मैं उस मृत्यु के अधर्म से बची ? जिनके सहारे मैं बची, उन्हीं को छोड़ देने को मुझसे कहते हो ? मैं नहीं छोड़ सकती । पापिनी हो सकती हूँ, पर उसके ऊपर क्या प्रकृतज्ञ भी बनूँ ?"
(जैनेन्द्र जी की लेखनी में अपने नारी पात्रों के प्रति अपार सहानुभूति है । उनके साहित्य में हमें नारी के प्रायः प्रत्येक रूप के दर्शन होते हैं ] वह हर चरित्र का उसके अपने गुणों-अवगुणों सहित विशद विश्लेषण तो कर ही देते हैं, पर कहीं भी पाठक को यह नहीं भूलने देते कि नारी मूलभूत रूप से नारी ही है । वह ममता और कोमलता