________________
कहानीकार जैनेन्द्र कला है । मनोरंजन नहीं, विचारों का उत्प्रेरण ही उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है।"
चरित्र-चित्रण की गहराई और विचार प्रधानता जैनेन्द्र की कहानियों की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं । वे अपनी कहानी के ढाँचे में मौलिक विचार भर देते है। उदाहरण के लिए उनकी कुछ कहानियाँ ले लीजिए । “तत्सत", "वह बेचारा", "लाल सरोवर", "नीलम देश की राज कन्या" आदि कहानियों मे सर्वत्र विचार बोझिलता है । अप्रत्यक्ष रूप से इन कहानियों में वे एक दार्शनिक के रूप में उभर कर पाये हैं । इसी प्रकार 'घुघरू", "भाभी", "व्याह", "विस्मृति", "परावर्तन", 'सम्बोधन' इत्यादि प्रणय तथा विवाह विषयों की कहानियाँ होते हुए भी मौलिक दृष्टिकोण तथा तात्त्विक गहराई में अपूर्व हैं । ये रचनाएँ चरित्र और वातावरण के मेल से पाठक पर एक सफल विचारात्मक निबन्ध का-सा अमिट प्रभाव छोड़ जाती हैं।
उनके चरित्रों की एक विशेषता है उनकी अहंवादिता। जैनेन्द्र स्वयं एक अहंवादी कलाकार हैं । इसलिए उनकी यह चारित्रिक विशेषता उनके चरित्रों में जहाँतहाँ मिलती है । अनेक चरित्रों में अहंवादिता इतने अडिग रूप में आती है कि पेशेवर औरतें भी, जो रूप यौवन की खुली दुकान लगाती हैं, व्यक्ति विशेष की माँग के प्रति इतना सबल प्रतिरोध करती हैं कि पाठक सन्न रह जाता है।
जैनेन्द्र की कला का उद्देश्य क्या है ? जोवन को बदलने के लिए कोई प्रेरणा उनके पास नहीं है । । "कला ईश्वर के लिए" यह उनका नारा है। उनका उपन्यास 'सुखदा" समग्र आदर्श की ओर एक सशक्त सकेत है । जीवन और जगत की दार्शनिक समस्याओं पर सहज और मौलिक विवेचन उन्होंने दिया है। दिन-रात के जीवन और समाज में उटने वाले गूढ़-गहन प्रश्नों का जिस कुशलता से उन्होंने समाधान किया है, वह देखते ही बनता है । सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं के अन्त में उन्होंने ईश्वर को रख दिया है। इसलिए उनकी समस्याओं का निदान अस्पष्ट और रहस्यमय-सा हो गया है।
मनःस्तव विश्लेषण प्रधान कहानियों के प्रथम लेखक वे ही हैं। उन्होंने चरित्र-चित्रण में मनोविज्ञान का सफल प्रयोग किया है । फ्रायड और एडलर के यौन मनोविज्ञान और मानसोपचार के तत्वों को लेकर वे कहीं-कहीं खिलवाड़ से करते प्रतीत होते हैं। वहाँ वे सतह पर ही रह जाते हैं । “साधु की हठ", "क:पन्था", "चलितचित्त", "वह अनुभव" इत्यादि उनकी इस प्रकार की मौलिक कहानियाँ हैं । इनमें यौन जीवन का भी चित्रण है । उनकी कुछ कहानियाँ प्रतीक शैली में लिखी गई हैं, जैसे ' तत्सत", "वह वेचारा", "लाल सरोवर" इत्यादि । इनमें उनका जीवन का अनुभव, स्वतन्त्र और मौलिक चिन्तन, विचार-रस पूरे सौष्ठव पर पाया जाता है। उनका कया-साहित्य उदात्त मानवीय सत्यों से परिपूर्ण है।
-
-
-