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________________ डाक्टर रामचरण महेन्द्र कहानीकार जैनेन्द्र प्रसाद संस्थान के कहानीकारों में श्री जैनेन्द्रकुमार विशेष उल्लेखनीय और साहित्यिक दृष्टि से सर्वाधिक सशक्त हिन्दी कहानीकार हैं, जिन्होंने यथेष्ट लोकप्रियता प्राप्त की है तथा जो विशेष अध्ययन की वस्तु माने गये हैं । जैनेन्द्र जी की कहानियों में कथानक का सौन्दर्य नहीं है । वे साधारण स्तर के पाठकों का ऊपरी मनोरंजन मात्र नहीं करते । केवल दिलचस्पी मात्र के लिए उन्होंने कहानियाँ नहीं लिखी हैं । वे मूलतः एक विचारक हैं । उनमें मौलिक विचारों तथा नवीन रीति से चिन्तन का महत्व है । प्रत्येक रचना में किसी अनुभूति की कोई मार्मिक चोट होती है । उनकी सृष्टि मौलिक चिन्तन की गहराई से निकलती है । वे विचार पूर्ण हैं | एक आलोचक के शब्दों में, “मानव-जीवन और मानव मन को लेकर जब वे विचारते हैं या उनके वैचारिक भंवर में जीवन श्रौर मन फंसाते हैं - यह कहना कठिन है, क्योंकि जीवन में घटनाएँ घटती रहती हैं और मन में तदनुरूप अल्प या अधिक परिमाण में उनकी प्रतिक्रियाएँ भी होती रहती हैं, किन्तु जैनेन्द्र के विचारप्रवाह में घटनाओं का आघात उतना तीव्र नहीं है, जितना मन की प्रतिक्रियाओं का । इसका मुख्य कारण यह है कि घटनाओं के पहले भी उनका विचार क्रम जारी रहता हैर पीछे भी । हाँ, घटनाओं के सम्पर्क से चिन्तन की गति कुछ तीव्र हो जाती है । जैनेन्द्र के पात्र उनके विचार- प्रसूत लगते हैं । पात्रों की सृष्टि के बाद उनकी चरित्र-विचित्रता और विशेषता के कारण कोई विचार सूत्र निकलता हो — इसका बहुत कम प्रभास होता है ।" जैनेन्द्र की कहानियों में बौद्धिक और दार्शनिक तत्त्वों की प्रधानता है । मनोविज्ञान उनकी आधार शिला है । इन चिन्तन और दार्शनिक तत्त्वों पर ही जैनेन्द्र कहानियाँ लिखते हैं । यही कारण है कि हिन्दी कहानी के क्ष ेत्र में जैनेन्द्र जी पहली बार आये थे, तो एक क्रान्तिकारी के रूप में उनका स्वागत हुआ था । यह नूतन दिशा की ओर एक प्रयोग था । जैनेन्द्र जी ने अपने दार्शनिक व्यक्तित्व का परिचय "एक रात" की भूमिका में पृष्ठ ४ पर इन शब्दों में दिया है- "मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जो मात्र लौकिक हो, जो सम्पूर्णता ( ६७ )
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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