SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व यही कारण हो सकता है इन आक्षेपों का कि जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों में वैयक्तिक और सामाजिक जीवन के यथार्थ को चित्रित किया है, यथार्थ हमेशा कटु होता है, कष्ट देने वाला होता है और मानसिक धरातल का नैराश्य तो उसी समय होता है, जबकि व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो, किन्तु उनका व्यक्ति उससे निष्क्रिय तो नहीं होता । वह निरन्तर श्रागे बढ़ने की कोशिश करता है । और फिर, जैनेन्द्र तो परमात्मा में विश्वास रखते हैं, नियतिवादी हैं, समाज ही रूढ़ियों के प्रति विद्रोह दिखाने के लिये ही वह अगर प्रमोद जैसे पात्रों से जजी से त्यागपत्र दिलवा देते हैं तो इसको हम पलायनवादिता नहीं, वरन् समाज के प्रति विद्रोह, उसकी रूढ़ियों के प्रति एक आवाज कह सकते हैं । हाँ, प्रत्येक उपन्यासकार की श्रभिव्यक्ति का अपना अलग एक रूप होता है, ढंग होता है और जैनेन्द्र ने अगर भावात्मक संसार को लेकर उसके ढंग में ही अपने मत की अभिव्यक्ति की तो उस पर प्रक्षेप का सवाल ही नहीं उठता ।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy