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________________ उपन्यासकार जैनेन्द्र ६ १ क्षणिक मनोरंजन करा देना ही उनके साहित्य का उद्देश्य है, वरन् उसमें जीवन का संदेश है, एक उद्देश्य है, लक्ष्य है । उनका एक-एक पात्र हमारे सम्मुख एक उद्देश्य लेकर प्राता है और जैनेन्द्र सुसंगठित एवं क्रमिक कथानों के बीच रूढ़ियों और प्रादर्शों का खंडन करते हुये जीवन के निरन्तर और वास्तविक सत्य को हमारे सम्मुख स्थापित कर देते हैं । इसका यह अभिप्राय भी नहीं है कि उनके उपन्यास कोरे चिन्तन के बोझ से बोझिल हो गये हैं और उनमें कोई रस नहीं है, कथा नहीं है । निसन्देह कोरी कथा का वहाँ प्रभाव है, किन्तु व्यक्ति की मानसिक भावनाओं के चित्रण और उसके जीवन की नित्य प्रति की समस्याओं को लेकर उसने पाठकों से एक अपनत्व स्थापित कर लिया है । विवाह, प्रेम, स्त्रीत्व, पुरुषत्व, हिंसा-अहिंसा और घर व बाहर की नित्यप्रति के जीवन की समस्याओंों को जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों का विषय बनाया है और उन समस्याओं से पीड़ित ऐसे पात्र खड़े कर दिये हैं कि पाठक को लगता है जैसे कि उसके दुःख, उसके सुख, उसकी अनुभूति और उसके द्वद्व को ही लेखक ने अपनी कथा में चित्रित कर दिया है। और वह और भी उत्सुकता और रुचि से उसमें खो जाता है अपनी समस्याओं का निदान पाने को, अपने दुख को हल्का करने को और जीवन की खुशियाँ बटोरने और नई व सही राह पाने को । यूँ तो लेखक के प्रत्येक उपन्यास में ही किसी न किसी रूप में इन समस्याओं को उठाया गया है और उसका निबन्धन मनोवैज्ञानिक ढंग से किया गया है, लेकिन 'सुखदा' लेखक की उपन्यास कला की ओर इन समस्याओं को मुखरित करने के क्षेत्र में प्रधान रचना कही जा सकती है । उदाहरणार्थ हम यहाँ इसी की कथा लेते हैंजैनेन्द्र के अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास की कथा भी थोड़ी है। बीमार क्षयग्रस्त सुखदा अस्पताल में पड़ी अपनी कहानी स्वयं कहती है । कथा इस प्रकार है । सुखदा एक सम्पन्न घराने में लाड़ों में पली लड़की है, जिसका कि विवाह उसके पिता के परिवार से कम स्तर वाले घराने के एक व्यक्ति से होता है । प्रारम्भ में कुछ वर्ष पति के प्रेम और प्रणय में मुग्ध हो दिन बीत जाते हैं, किन्तु धीरे-धीरे जीवन की वास्तविकताओं के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण के कारण पति-पत्नी के बीच वैमनस्य बढ़ता जाता है। इसी बीच एक और घटना घट जाती है जिससे कि सुखदा के जीवन में नया परिवर्तन आ जाता है । गंगासिंह नामधारी एक युवक नौकरी करने के लिये इनके घर आता है और फिर अचानक ही एक दिन काम छोड़ कर चला जाता है । सुखदा को इस बीच उसके किसी क्रांतिकारी दल से सम्बन्धित होने के सम्बंध में संशय हो जाता है जो कि कुछ दिन बाद ही उसके अखबारों में चित्र सहित समाचारों से पुष्ट हो जाता है और वह व्यक्ति गिरफ्तार कर लिया जाता है ।
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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