SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमारी वीणा सेठ उपन्यासकार जैनेन्द्र मानवीय अन्तरात्मा के सफल चित्रकार जैनेन्द्रकुमार के साहित्य से आज हिंदी जगत में कोई भी अपरिचित नहीं रह गया है। सच पूछा जाये तो व्यक्ति की मनःस्थिति का इतना बारीक, सफल और सशक्त अध्ययन करने और उसको मनो. विज्ञान की कसौटी पर घिसकर परखने वाला प्रथम उपन्यासकार हिन्दी-साहित्य में जैनेन्द्र ही हैं। उनकी समस्त रचनाओं में मानव मन के अन्तर्जगत की कथा निहित है, उसके मनोलोक की उथल-पुथल और भावों के उतार-चढ़ाव का चित्रण है । परिस्थिति की असाधारणता या घटनाओं का जोड़-तोड़ और फैलाव वहाँ नहीं है, वरन् भावक्षेत्र के सशक्त पात्रों का चित्रण ही सर्वत्र प्रमुखता पाता रहा है। ___ परख, तपोभूमि, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, सुखदा, विवर्त आदि जैनेन्द्र के प्रमुख उपन्यास हैं । इन सभी में जो विशेषता हमें देखने को मिलती है, वह है 'अन्त:संघर्ष' जिसको कि उन्होंने विभिन्न पात्र खड़े कर अपने कथानकों में उभारा है । सुनीता की भूमिका में वह स्वयं लिखते हैं-"इस विश्व के छोटे से छोटे खण्ड को लेकर हम अपना चित्र बना सकते हैं और उसमें सत्य के दर्शन पा सकते हैं । उसके द्वारा हम सत्य के दर्शन भी करा सकते हैं।" और सचमुच ही जनेन्द्र ने अपने पूरे साहित्य में अपने प्रास-पास के जीवन से ही अपने उपन्यासों के लिये सामग्री जुटा ली है और शायद उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यही है कि उनकी कथा, उनके पात्र, उनका चित्रण किसी काल्पनिक या प्रादर्श संसार का नहीं है, वरन् हमारी नित्यप्रति की जीवन समस्याओं का है, हमारी हृदय की धड़कनों का और हमारे दिल की गहराइयों में उतरते चढ़ते भावों और विचारों का है। उपन्यास ही नहीं, जैनेन्द्र की कहानियों में भी हमें उनकी यही विशेषता परिलक्षित होती है। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं- 'फांसी', 'वातायन', 'नीलम देश की राजकन्या', 'एक रात', 'दो चिड़ियां', 'पाजेब', 'जयसंधि' प्रादि। इसके अतिरिक्त जैनेन्द्र जी के कई निबंध-संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। जैनेन्द्र का सम्पूर्ण साहित्य काल और देश की सीमाओं से ऊपर उठकर व्यक्ति में समा गया है । वही केन्द्र बिन्दु और वही प्रेरणा का सूत्र बन कर रह गया है। जैनेन्द्र जी स्वयं लिखते हैं- "देशकाल के चौखटे में देखी भोगी गई घटना अपने ( ८६ )
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy