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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
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नैतिक दृष्टि से अवांछित हैं ।
जैनेन्द्र के नारी चरित्रों की यथार्थता को व्यक्ति तक ही सीमित रखा जा सकता है । वह सामाजिक स्वीकृति का अधिकारी नहीं है । जैनेन्द्र द्वारा चित्रित स्त्रियों जैसी समाज में एक दो हो सकती हैं, न कि उनकी बहुतायत है । ऐसा लगता है कि जैनेन्द्र की नारी दूसरों को शरीर देने के लिये ही बनी है । ऐसा करने में उसे किसी भी प्रकार का संकोच नहीं होता । इसी ग्रह के कारण उनकी नायिकायें व्यक्तित्वहीन और चेतना शून्य हो गई हैं। वे केवल वस्तु हैं जिनका उपभोग कोई भी कर सकता है। एक ओर तो इनकी नारियों में प्रेम करने और शरीर देने का कोई आधार नहीं है और दूसरी ओर पुरुष उन्हें अपने गले पड़ी वस्तु समझता है, वह उनसे छुटकारा पाना चाहता है । 'व्यतीत' में 'अनीता' के ऊपर उसके पति मिस्टर 'पुरी' का जैसे कोई अधिकार ही नहीं और न वे इसके इच्छुक ही जान पड़ते हैं । 'अनीता' बहन रूप में रहकर भी अन्त तक जयंत को रक्तदान देने के लिये उत्सुक है, जिसे वह स्वीकार भी कर लेता है । ऐसे सामाजिक सम्बन्धों के औचित्य पर तो प्रश्नवाची चिह्न लगा ही है, पर आए दिन ऐसी घटनाएँ समाज में घटती हैं इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता । पाश्चात्य सभ्यता के आलोक में जिस भारतीय 'नागरिक - संस्कृति' का निर्माण हो रहा है, उसे दृष्टि में रखते हुये सहसा ऐसे वर्णनों को यथार्थ कह देना कठिन है । एक विशिष्ट समाज में तो आज विवाह और प्रेम को अलग-अलग देखने का प्रचलन-सा होता जा रहा है। पति और पुरुष मित्र तथा पत्नी और महिला मित्र की समाज में नैतिक स्तर दिलाने की भरपूर कोशिश हो रही है, जिससे सामाजिक जीवन ( Social life ) और व्यक्तिगत जीवन ( Private life) जैसी दो स्वतंत्र सत्ताओं की स्वीकृति-सी मिलती जा रही है । अतः 'विवर्त' में यदि जैनेन्द्र जी ने ऐसे चरित्रों का निर्माण किया है तो उन्हें समीचीन ही कहा जा सकता है । यदि 'भुवन मोहिनी' जितेन से प्रेम करती हुई जो कि पर-पुरुष है — पत्नीधर्म का पूरा-पूरा निर्वाह करती है तो प्रसंगत नहीं कहा जा सकता । इतना अवश्य है, कुछ प्रसंगों की सृष्टि में जैनेन्द्रजी को अधिक संयत होने की आवश्यकता थी, जिन्हें कलात्मक भाषा नहीं मिल पाई है ।
प्रेमचन्द और उनके युग के प्रभावित सामाजिक उपन्यासों और जैनेन्द्रकुमार के सामाजिक उपन्यासों में मौलिक भेद दिखाई पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि दोनों की चिंतन भूमि और रचना प्रक्रिया में महान अन्तर है। एक के पात्रों के सम्मुख समाज की समस्या है -- जिसका प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है और दूसरे के पात्रों के सम्मुख व्यक्ति विशेष की समस्या है, जिसका प्रभाव अधिक से अधिक उसके सम्पर्क