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आकर्षण के रहते हुये, उसके दूर के सम्बन्ध में बहन होने के नाते, उसे पत्नी के रूप में न पा सका, तो नारी के प्रति बेवफाई की भावना उसके अर्न्तमन को दूषित कर गयी । 'जयवर्धन मे सेक्स की समस्या ने विचित्र रूप ले लिया । यहाँ सेक्स की माँग उतनी ही तीव्र और अवरोधों को उखाड़ फेंकने वाली है, जितनी हरि प्रसन्न - - सुनीता, सुखदा या लाल में, किन्तु यहाँ लेखक ने उस भावना को संयम और त्याग का ऐसा चोला पहना दिया है कि इला और जय एक दूसरे के लिए तीखी कामना से पीड़ित होने के कारण बिना विवाह बन्धन में बंधे ही संग-संग रहते हैं । जैनेन्द्र की बदली हुई प्रवृत्ति 'अनामस्वामी' में प्रकट होती है । उदिता अमेरिका में जाकर केवल कामेच्छा की तृप्ति के लिए एक साथ दो-दो पुरुषों की बनकर और फिर भी आर्थिक, सामाजिक एवं बदलते हुए नैतिक मूल्यों की दृष्टि से स्वाधीन जीवन जीने को तैयार हैं।
जैनेन्द्र प्रेम व्यापार को इन्द्रियातीत नहीं मानते और न ही वासना को प्रेम का विरोधी मानते हैं। उनका विश्वास है कि हर साधना के पहले कामनाओं की तृप्ति आवश्यक है। जैनेन्द्र की दृष्टि में काम वासना की तृप्ति भी उतनी ही बड़ी साधना है जितनी कैवल्य की उपलब्धियाँ। सेक्स का क्षेत्र हो या प्रेम का परिचर्या करने वाली मात्र भुवनमोहिनी हो अनिता हो या सुनीता - सबको एकाग्र भाव से समर्पित उपचार करना ही होगा, तभी अपेक्षित फल की प्राप्ति सम्भव । उसके बिना परछाईं को तलवार से काटने के जैसा व्यर्थ प्रयत्न | जैनेन्द्र सेक्स को व्यक्ति की क्रियाओं की एक चालक शक्ति मानते हैं, किन्तु उसी को एक मात्र एक चालिका नहीं मानते । यही कारण है कि कट्टो, मृणाल, सुनीता, उदिता या वसुन्धरा आदि को सेक्स समस्या से जूझते हुए जैनेन्द्र ने सब जगह यही निष्कर्ष निकाले हैं। वे व्यक्ति को व्यक्ति के परिवेश में विभिन्न प्रतिक्रियाओं में लिपटा देखना अधिक उपयुक्त मानते हैं । अमुक्त वासना विकार का कारण हो सकती है, तनाव उत्पन्न कर सकती है, किन्तु उसका आचार हर
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